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जालंधर(25/04/2023): इस कहानी में सटीक उधारणों, फैक्ट्स और डाटा को आधार बना कर आपको ये बताने की एक कोशिश है की media यानिकि journalists की जनता के प्रति कौन कौन सी जिम्मेदारियां होती है और जनता के पास कौन कौन से ऐसे अधिकार है जो वो journalists के काम को जन भलाई के पक्ष में इस्तेमाल कर सकती है, अगर कोई media आउटलेट, कोई journalist अपने काम को सही ढंग से नहीं कर रहा तो जनता कैसे उसे सही रास्ते पर ला सकती है, साथ ही आपको पता चलेगा की क्यों media(journalism) को रेगुलेट करना लोकतंत्र के लिए खतरे से खाली नहीं होता, इस कहानी में आज के समय में media के जितने रूप है उनमेसे सभी प्रमुख रूपों पर चर्चा होगी, साथ ही आपको ये बताने की कोशिश की जाएगी की media के नए नए चेहरों और हर नए रूप को Democracy के चौंकीदार के रूप में कैसे सही इस्तेमाल किया जा सकता है, यह तो रहा लीड हिस्सा, अब चलते है बिस्तार की तरफ

समय था शीत युद्ध का उस समय पोलैंड में जो सोवियत प्रभाव के अधीन था में वहाँ की सरकार रोज़ शाम 7.30 पर एक टीवी न्यूज़ बुलेटिन लाया करती थी जिसमे सरकार अपने द्वारा किए गए कार्यो और कम्युनिस्ट शाशन का बखान किया करती, इस न्यूज़ बुलेटिन के जरिए सरकार लोगो की सोच में कम्युनिस्ट विचारधारा को कूट कूट के भरना चाहती थी पर उस समय जनता इस शो को फ्लॉप करने के लिए अपने पेट्स को लेकर पार्क में घूमने निकल जाया करती जिससे सीधे तौर पर नहीं पर बिना कुछ कहे सरकार के प्रचार तंत्र को जनता के नकारने का ये बेहतरीन तरीका था, इस उधारण  से आज की जनता को भी ये सीख मिलती है की अगर उनके देश में कोई media आउटलेट सरकारी और दरबारी बन गया है तो उसे कैसे मुहतोड़ जवाब देना चाहिए

इसके इलावा उस समय पोलैंड में वो लोग जो Democracy की वकालत करते थे चोरी छुपे कैमरा अपने साथ रखते और प्राइवेट स्तर पर डॉक्यूमेंट्री बनाते और बाद में सरकार को कानो कान खबर न हो इस लिए ये डॉक्युमेंट्रीज़ धार्मिक स्थलों की बेसमेंट में दिखाए जाते, क्योंकि ये माना जाता है की सूचना ही Democracy बनाती है

journalism का एक जरुरी काम होता है की वो जनता को जरुरी सूचना मुहैया करवाए जो पूरी तरह से स्वतंत्र और सेल्फ गवर्न सूचन हो कहने का मतलब है सूचना जो सही हो और उसमे सरकार के दबाव में कोई मिलावट न की गई हो, journalism ही जनता को यह बताती है की कौन हीरो है, कौन खलनायक है साथ ही इस काम में भी हमारी मदद करती है की यह जाना जाये की कुम्मिनिटी के लक्ष्य क्या है, media/ journalism एक चौकीदार का काम करती है, ये उन लोगो की आवाज़ सामने लाने का काम करती जिन्हे भुला दिया गया हो, ऐसे ही है एक पत्रकार यूएन यिंग चैन जो पहले न्यू यॉर्क डेली के लिए रिपोर्टिंग किया करते थे बाद में होन्ग कोंग में journalism ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाने के लिए मशहूर हुए, कहा करते थे की मैं उन लोगो को आवाज़ देने का काम करता हूँ जिन्हे आवाज़ की सबसे ज्यादा जरुरत है, वो लोग जो कमजोर हैं

वो समाज जो आज़ादी को खत्म करना चाहते है अगर प्रेस को कुचल देंगे तो आज़ादी खुद ही खत्म हो जाएगी ऐसे में कैपिटलिज्म को कुचलने की जरुरत ही नहीं होगी, साफ़ है जिस समाज में फ्री प्रेस नहीं वहाँ आज़ादी नहीं हो सकती, प्रेस जिसका काम जनता द्वारा मिली शक्ति का इस्तेमाल कैसे किया जा रहा इस पर नजर रखना, किसी शक्ति का दुरूपयोग हो रहा हो तो उस पर नजर रखना, जनता को समस्याओं की तरफ अलर्ट रखना और सोशल कनेक्शंस को बनाने में रोल अदा करना प्रमुख प्रेस कार्य होते है जो आज के युग में कमर्सिअल्स, गवर्नमेंट सोर्सेज और पोलिटिकल कंटेंट की बाढ़ में बह गए हैं, अगर प्रेस को ज्यादा डिफाइन करने की कोशिश भी जाएगी तो ये कदम भी प्रेस की आज़ादी को नुक्सान ही पहुंचाएगा, डॉक्टर्स और वकीलों को जैसे लाइसेंस के बिना काम नहीं करने दिया जाता ये तरीका प्रेस के मामले में लागू करने से भी प्रेस की आज़ादी में बाधा बनेगा, हर नई जेनरेशन अपने हिसाब से एक नया journalism सामने लाती है जो समय के हिसाब से अलग किसम की प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ़ कंटेंट पर आधारित होता है हर बार एहि कोशिश होती है की पहले से बेहतर media रूप को सामने रखा जाये

journalism का एक प्रमुख काम यह भी है की लोगो को सच बताएं ताकि जनता सही शाशन चला सके, अमेरिका में एक चर्चित ब्लॉग है जिसका नाम है dallassouthblog.com जिसे शॉन विल्लियम्स चलाते है इस ब्लॉग का प्रमुख कार्य है अमेरिका भर में ख़ास कर साउथ डलास में अफ्रीकन अमेरिकन वर्ग की समस्याओं को सामने लाना, साल 2013 तक यह ब्लॉग नॉन प्रॉफिट संस्थान  के रूप में उभर आया था जो सोशल मीडिया और नई तकनीक का सहारा लेते हुए देश भर में पीछे रह गए समाज को शिक्षित करने का काम करता चला आरहा है

समाचार कम्युनिकेशन्स का वो हिस्सा है जो हमें बाहरी दुनिया में चल रही समस्याओं, चेंजिंग इवेंट्स और करैक्टर से जुडी सूचना देने का काम करती है माना जाता है है की इतिहासकारों की सलाह लेकर पुराने ज़माने में शाशकों ने अपने देशों में न्यूज़ को इस्तेमाल करके अलग अलग वर्ग को जोड़कर रखने में कामयाबी हासिल की थी, न्यूज़ के जरिये ही शाशक जनता को एक कॉमन डर के सहारे बाँध कर रखते थे, जिस लोकतंत्र में न्यूज़ और media जितना ज्यादा ओपन होगा वो लोकतंत्र उतना ही ज्यादा स्वस्थ होगा, जो लोग इस स्टोरी को पढ़ रहे हैं उनमेसे ज्यादा लोगो को इस बात का पता शायद नहीं होगा की दुनिया के पहले समाचार पत्र की शुरआत कॉफ़ी हाउस से हुई, अमेरिका में तो journalism की शुरुआत ही पब से हुई थी, जब लोग कॉफ़ी हाउस में इकठा होते और जो बातें होती, जो राजनितिक आलोचनाएं होती, दुनिया से जुडी चर्चा होती उसे कॉफ़ी हाउस से पता करके प्रिंटर्स ने कागज पर छापना शुरू किया एहि अखबार की शुरआत थी, अब यह भी जान लीजिये की 18th सेंचुरी की शुरुआत में लंदन में प्रिंटर्स और खबरे लिखने वालों ने फ्री स्पीच और फ्री प्रेस की थ्योरी की कल्पना की थी इसके  साथ 1720 में ही लंदन में ये थ्योरी भी सामने आई थी की सच को लइबेल से सुरक्षा देने की सख्त जरुरत है

आज के समय में जो नया journalism है उसका सबसे पहला काम ये है की वो जनता तक सबसे सटीक और सच्ची खबर पहुचाये जिस पर जनता भरोसा कर सके, ऐसा इस लिए है की क्योकि आज के तकनीक के जमाने में जनता तक एक ही इवेंट्स से जुड़े कई सारे अलग अलग डिसिशन  तक पहुंचाने  वाले समाचार पहुंच जाते है जिस वजह से जनता भ्रमित रहती है की वो किस समाचार पर भरोसा करे और किस पर नहीं इस लिए journalist का काम है की वो अपने अनुभवों और सोर्सेज का इस्तेमाल करके इवेंट से जुडी सही और सटीक खबर जनता तक समय पर पहुचाये जिस पर जनता आसानी से भरोसा कर सके,

आजके समय में journalists का दूसरा सबसे जरुरी काम है की वो जनता को वो न्यूज़ प्रमुखता से बिलकुल आसान करके दे जिसकी कोई सेंस हो मतलब जिसमे कोई ज्ञान की बात हो, दिन भर हर खबर को कॉपी पेस्ट करके लोगो तक भेजते रहना सही कदम नहीं होता उलटे लोगो को परेशान करने का काम करता है

तीसरा जरुरी काम है की न्यूज़ में इवेंट से जुड़े ज्यादा से ज्यादा सबूत दिए जाये ताकि ये कहना आसान हो की एहि बेस्ट न्यूज़ है

अब बात जनता के लिए जिस इवेंट में आपको कोई journalist दिखाई दे तो आप तुरंत citizen journalist का काम करते हुए इवेंट की वीडियो या पिक्चर ले ताकि इवेंट का रिकॉर्ड बना रह सके, पर इस बात का ध्यान भी रहना चाहिए की citizens और मशीन्स दोनों को एक professional journalist के रोले को रेप्लिकेट करने की कोशिश करना भी सही कदम नहीं होगा

Citizens लाते है अनुभव, एक्सपर्टइस और एक खूबी जो किसी इवेंट को ज्यादा सहूलियत के साथ अलग अलग पॉइंट्स से देखने का काम करती है, किसी इवेंट को लेकर जो ज्ञान और एक्सपर्टइस citizens के पास होती है वो किसी ट्रेडिशनल रिपोर्टर और न्यूज़ रूम के पास नहीं हो सकती, वही professional journalist के पास एक्सपर्टइस होती कि वो बेहतर ढंग से सत्ता में बैठे लोगो को इंटेरोगेट कर सके, नए सबूत खोज निकालना, इनफार्मेशन को ट्रांसलेट करना, ट्रैंगुलेट करना और आने वाली सूचना कितनी सही है ये जान पाने की क़ाबलियत एक professional journalist में citizen journalist से ज्यादा होती है

आज के समय में लोग सबसे ज्यादा खबर किसी लोकल टीवी चैनल से लेते है, इससे ज्यादा किसी अन्य मीडियम की तरफ कम ही जाते है, जब की यह भी सही है की लोकल टीवी चैनल्स इस बात को भी दर किनार करके चलते है की सरकार सही मायने में काम करती कैसे है, इस बात के भी कोई मजबूत सबूत नहीं है की इंटरनेट के आने के बाद ज्ञान का लेवल बढ़ा है तो कितना, वहीँ लिपमैन कहते है की नागरिक सिनेमा में फिल्म देखने वाले की तरह है जो थर्ड एक्ट के बाद फिल्म देखने पहुँचता है और फिल्म के आखिरी सीन तक सिनेमा में बैठा रहता है और बस एहि जानने की कोशिश करता रहता है की फिल्म में कौन हीरो है और कौन विल्लियन, डेमोक्रेसी से जुडी मुश्किलों या यु कहे की डेमोक्रेसी में आने वाली कठिनाइयों का हल ये बिलकुल नहीं की इन कठिनाइयों से आंख मूँद ली जाए, इनका हल सिर्फ प्रेस के स्किल्स को डेवेलोप करके और citizens के नॉलेज लेवल को बढ़ा कर ही हो सकता है, सिर्फ फ्री प्रेस ही सच जनता को बता सकती है पहले यह माना जाता था की सरकारी सेंसरशिप से मुक्त रहना ही प्रेस की आज़ादी है पर अब माना जाता है कि सरकारी सेंसरशिप के इलावा बिज़नेस, विज्ञापन देने वालों का मीडिया पर पड़ने वाले दबाव और राजनीतिक पार्टियों के दबावों के इलावा और कई कारन है जिनसे आज़ादी के बिना फ्री प्रेस की कल्पना करना मुश्किल है मतलब जनता को सच्ची सूचना इन दबावों के रहते नहीं मिल सकती, आजकल देखा जा सकता है की लगभग हर तरफ  हर मीडिया हॉउस में न्यूज़ रूम छोटे हो रहे हैं यह बात journalism की एकाउंटेबिलिटी को कमजोर करती है नागरिको को इस बात की गंभीर चिंता करनी चाहिए

साल 2013 में एक सर्वे रिपोर्ट आई जिसमे ये खुलासा हुआ की साल 2013 तक अमेरिका में सिर्फ 18% लोग ही ट्विटर इस्तेमाल करते थे

Walter Lippmann कहा करते थे की न्यूज़ और सत्य दोनों एक चीज़ नहीं हैं, न्यूज़ का काम है की लोगो को किसी इवेंट के होने के बारे में बताना या यु कहें की लोगो को इवेंट के बारे सावधान करना, वही सत्य का काम है की छुपे हुए फैक्ट्स को सामने लाना,

पत्रकार(reporter) सत्य के बारे कभी भी स्पष्ट नहीं रहे हैं, मशहूर पत्रकार Ted Koppel ने कहा है की journalism पढ़ाने के स्कूल बस समय की बर्बादी है और कुछ नहीं, इसी तरह मशहूर पत्रकार David Bartlett का कहना है की प्रेस समाज के लिए आईने का काम करता है, आज के समय में journalism पैशन का रिफ्लेक्शन है, इस बात में मतभेद है की journalist खुदको सच सामने लाने वाला समझते है,

न्यू यॉर्क टाइम्स के Bill Keller का कहना है की journalist इवेंट की कवरेज करता है ज्यादा से ज्यादा सूचना इकठा करता है और जनता के सामने पेश करता है ताकि जनता इवेंट को लेकर अपना माइंड मेक अप कर सके, Bill keller कहते है “की कवरेज में सही नाम और सही तरीख लिखना क्या काफी है जी नहीं ये काफी नहीं होता”

एक Hutchins commission बनाया गया था जिसमे कई सारे स्कॉलर्स ने अपना योगदान दिया, सालों तक रिसर्च की गई जिसके बाद इस बात की चेतावनी दी गई और बताया गया की वो एकाउंट्स पब्लिश करना कितना खतरनाक हो सकते हैं जिनके फैक्ट्स तो बिलकुल ठीक है पर सचाई से दूर हैं, कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था की ये काफी नहीं होगा की फैक्ट्स सचाई से जनता के सामने रखा जाए, बल्कि इस बात की ज्यादा जरुरत है की फैक्ट्स की सचाई को भी रिपोर्ट किया जाए

Journalist Jack Fuller  का कहना है की पाठक मतलब जनता किसी भी मामले से जुडी पूरी कवरेज को पढ़ने में रूचि रखते है न की किसी मामले की कवरेज के बस किसी हिस्से के बारे में जानने में, लोग पोलेराइज़्ड डिस्कशन से ऊभ चुके हैं

जानकार मानते हैं की जब से डिजिटल मीडिया आया है तब से सबसे जरुरी चीज़ बनी है स्पीड, हर पत्रकार(reporter) चाहता है की वो सबसे पहले अपनी स्टोरी जनता के सामने रख दे, ये बात बिलकुल गलत है जानकार कहते है की स्पीड एक्यूरेसी की दुश्मन है, साथ ही यह भी मानते हैं की जब पत्रकार(reporter) न्यूज़ कलेक्ट कर रहे होते है तब भी स्पीड एक्यूरेसी की दुश्मन होती है, जानकर कहते है की Open networked media environment का मतलब है ज्यादा अफवाहें, ज्यादा गलत सूचना जनता तक पहुंच रही है, जो पढ़ने वालों को ज्यादा कंफ्यूज और साथ ही समाचार मुहैया करवाने वाले संस्थानों पर भी ज्यादा प्रेशर बनाने का काम करता है

साथ ही जानकार यह भी मानते हैं की सोशल मीडिया के जरिए मेन स्ट्रीम मीडिया में होने वाली गलत रिपोर्टिंग  को सुधारने में भी बहुत मदद मिलती है, साल 2011 में अमेरिकन मीडिया में एक खबर चली की Congress woman Gabrielle Giffords की टक्सन में किसी अज्ञात बन्दूक धारी ने गोली मार कर हत्या कर दी है, वही कुछ मीडिया चैनल्स ने खबर चलाई की उन्हें गोली लगी है और उन्हें इलाज़ के लिए हॉस्पिटल में भर्ती किया गया है, खबर में जो मतभेद था उसे दूर करते हुए लोगो ने ट्विटर पर सही सूचना लिखी जिसे आधार बना कर मीडिया चैनल्स ने खबर अगले 15 मिनट्स के भीतर ही ठीक करके चला दी

ऐसा  ही एक मामला तब सामने आया जब इंग्लैंड में G20  सम्मलेन चल रहा था तभी अप्रैल में इस सम्मलेन का विरोध होना शुरू हो गया जो जल्द ही एक प्रदर्शन में बदल गया, इस दौरान एक अख़बार बेचने वाले आदमी जिनका नाम था श्रीमान टॉमलिंसन जिनकी इस प्रदर्शन के दौरान मौत हो गई, इस  मामले पर सफाई देते हुए पुलिस ने कहा की टॉमलिंसन की मौत के जिम्मेदार प्रदर्शन कर रहे लोग हैं अगर वो बाधा न बनते और समय पे इलाज मिल जाता तो टॉमलिंसन की जान बच सकती थी पुलिस के मुताबिक टॉमलिंसन हार्ट अटैक से नीच गिरे और उनकी मौत हुई, अगले दिन evening  standard  अखबार ने लिखा की पुलिस पर ईंटों से हमला जब वो एक मरते हुए इंसान को बचा रहे थे, पर the  gaurdian  अख़बार को अभी तक संतोष जनक जवाब नहीं मिला था तो अख़बार ने सोशल मीडिया पर मामले की उपलब्ध सभी तस्वीरें अपलोड करदी और अपने पाठकों और जनता से इस मामले को हल करने के लिए मादा मांगी

तभी सामने आए एक शक्श जिनका नाम है क्रिस ला जॉनी जिनके पास इस मामले से जुड़ा एक धमाके दार वीडियो था, क्रिस ने इंटरनेट पर डालने की सोची थी पर कई बार सोचने के बाद रुक गए थे, the  gaurdian  अख़बार के रिपोर्टर लुइस ने क्रिस से संपर्क साधा और सभी एविडेंस को मिलाने और परखने के बाद इस वीडियो के आधार पर जो क्रिस से the  gaurdian  अख़बार को मिली थी से जानत के सामने आया की पुलिस की कार्रवाई की वजह से टॉमलिंसन की मौत हुई थी

इस मामले में क्रिस ने एक citizen  journalist  की भूमिका निभाई, तो अख़बार के reporter ने एक professional  journalist  की और सोशल मीडिया की वजह से इन दोनों के अनुभव से ये मामला हल हो सका और सच सामने आया

आपने बहुत से मामलों में सुना होगा की reporter  कहता है की वो बैलेंस लिखता है पर कई ऐसे मामले होते है जिसमे 2  से ज्यादा पक्ष होते है ऐसे मामलों में बैलेंस करते हुए किस पक्ष को कितना हॉनर देना है ये बड़ा मुश्किल काम बन जाता है सोचिये की बैलेंस करते समय अगर किसी पक्ष को ज्यादा हॉनर मिल जाता है जो उतने का हकदार नहीं तो ये बात बहुत गलत हो जाती है बहुत बार तो बैलेंस करना मामले से जुड़े सच के साथ ही अन्य बन जाता है, इसके इलावा याद रखना चाहिए की कई बार reporting करते समय, एडिटिंग करते समय या फिर इंटरप्रिटेशन करते समय कोई गलती हो जाये जो लम्बे समय के लिए एक पाप तक बन जाती है इस लिए हम सबको अपना काम करते समय कितना सजग रहना है इस बात का अंदाजा लगा लीजिये, जब हम सब रिपोर्ट लिख रहे होते है तो याद रहना चाहिए की जितनी ज्यादा इनफार्मेशन होगी उतना ज्यादा ही सच तक पहुंचने में मुश्किल होगी, आपके पास जितना ज्यादा ज्ञान होगा वो गहरा और ज्यादा से ज्यादा  बेहतर हो सकता है पर नॉलेज का स्पेशलाइज़्ड होना बहुत जरुरी होता है,

साल 2000  आते आते अमेरिका के ज्यादा तर न्यूज़ लीडर्स पत्रकार(reporter) से ज्यादा अब बिज़नेस मैन बन गए थे बहुत सारों ने तो माना था की वो अब अपना तीसरा हिस्सा समय न्यूज़ से  हट कर बिज़नेस पर लगा रहे थे

आप सबको याद रखना चाहिए की अगर एक तरफ किसी लोकल खेल मुकाबले से जुडी खबर है और दूसरी तरफ किसी लोकल एरिया में कही पानी या निकासी की समस्या से जुडी खबर है तो ज्यादा रीडर खेल वाली खबर को मिलते है, ऐसे ही एक reporter  जो CIA और NSA  के मामलों को कवर करता है तो ऐसा reporter  किसी सोशल मीडिया प्लेटफार्म या ब्लॉग के जरिये उन पत्रकारों से आगे निकलने की होड़ में नहीं पड़ेगा जो लोग मनोरंजन के छेत्र को कवर करते है ऐसा इस लिए किया जाता है की NSA  और CIA को कवर करने वाले reporter  को अपने एनोनिमस सोर्सेज को प्रोटेक्ट करने लिए अपने प्रोफाइल को लो मतलब छुपा के रखना होता है तो इसका मतलब है की मनोरंजन जैसे छेत्र को कवर करने वालों के रीडर ज्यादा होते है पर ये छेत्र ही अख़बार, journalism और पत्रकार(reporter) के भविष्य को नष्ट करते है

याद रखिये की पत्रकार की लॉयलिटी उसके मीडिया हाउस के मालिक या बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर  के प्रति नहीं होती उसकी लॉयलिटी बस उसको पढ़ने और देखने वाले उसके दर्शक के प्रति होती है, एक्टर जॉर्ज के पिता निक क्लूनी जो पहले न्यूज़ पढ़ने का काम एक टेलीविज़न के लिए किया करते थे ने अपने मैनेजिंग डायरेक्टर्स को कहा था की वो इस बात के लिए उनके धन्यवादी है की उन की तनख्वा का चेक वही लोग देते है पर निक के मुताबिक उनकी लॉयलिटी उनके टेलीविज़न के डायरेक्टर्स के प्रति  नहीं है  सिर्फ उन लोगो के लिए है जो उन्हें सुनने और देखने के लिए टेलीविज़न ऑन करते है

साल 2012  में सामने आए एक आंकड़े के मुताबिक 10  मेसे 6  से ज्यादा मतलब लगभग 64 % अमेरिकी लोग ऐसी खबर में रूचि लेते हैं जिसका झुकाव किसी भी पॉइंट ऑफ़ व्यू की तरफ न हो, मशहूर फाइनेंसर Mr  Eugene  Meyer  ने जब साल 1933  में washington  post अख़बार खरीदा तो कहा की अगर किसी अखबार के सामने ये समस्या आन पड़े की उसे पब्लिक गुड में अपने कुछ बड़े फायदे ठुकराने पड़े तो अख़बार को इस कदम को उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए, 90  के दशक में लोकल टीवी चैनल्स पे सबसे ज्यादा चर्चित 2  स्लोगन्स आज भी याद किये जाते है पहला “on  your  side ” और दूसरा ” working  4  you ”  वियतनाम और वाटरगेट के मसले के बाद यह बात पहली बार देखी गई की मीडिया की कवरेज खास कर केबल टीवी चैनल्स की कवरेज सब्जेक्टिव और जजमेंटल होने लगी थी, अब खबर की सीधे रिपोर्टिंग कम हो गई थी और जनता में लोग क्या कह रहे इस बात को रिपोर्ट करने का रिवाज़ शुरू हो गया था, अख़बारों में अब यह छपने लगा था की चुनाव में खड़े कैंडिडेट का कहने का मतलब क्या निकल रहा है पहले सीधी रिपोर्टिंग होती थी की कैंडिडेट ने क्या कहा बस, जहाँ साल 1968  में कैंडिडेट कोट, साउंड बाईट 43  सेकण्ड्स होती थी यह सब साल 1988  तक घट कर सिर्फ 9  सेकंड रह गई थी, स्टोरीज में एनालिसिस तो किया जाता था पर इन स्टोरीज को एनालिसिस माना नहीं जाता था, टीवी चैनल्स ने अब खबर टारगेट ग्रुप्स को देख कर बनानी शुरू कर दी थी जैसे की टीवी पर ऐसे समाचार बनाये जाते जो सिर्फ 18  साल से लेकर 49  साल तक महिलाओं की पसंद के हों क्योकि रिसर्च कहने लगी थी की  एहि ऐज ग्रुप है जो खरीदारी को प्रभावित करता है, अब अख़बारों ने ज़िप कोड को आधार बना कर अलग टारगेट एरिया में अलग गिनती में अख़बार भिजवाने शुरू कर दिए थे ऐसा करने से इन मीडिया हाउस के खर्चे कम हो गए,

साल 1992  से 1997  के बीच छोटे अख़बारों ने जहाँ अपना न्यूज़ बजट 11 % तक कम कर दिया था वही बड़े अख़बारों ने इसे 14 % तक कम कर दिया था, अब journalists की कम समय सीमा के लिए ही सही पर फाइनेंसियल परफॉरमेंस मांगी जाने लगी थी, अब इंफ्रारेड ग्लासेज ने टीवी स्क्रीन्स पे अपनी जगह बना ली थी, जिसके जरिये यह नोट किया जाने लगा था की मिनट दर मिनट किस न्यूज़ शो की क्या रेटिंग है, यह टेक्नोलॉजी दर्शक की आँखों की मूवमेंट को नोट करके आंकड़े बनाने के काम आती है, मतलब दर्शक ने कितनी देर टीवी देखा और कब देखना बंद किया, लॉस एंजेलेस टाइम्स के मशहूर journalist जॉन कार्रोल कहते हैं की अब वो समय आगया था की अगर कोई journalist अपनी रिपोर्ट में पब्लिक सर्विस लिख दे या कोई ऐसी रिपोर्टिंग करदे जो पब्लिक इंटरेस्ट में हो तो उसे उसके मीडिया हाउस में ओल्ड फैशन, आइडलिस्ट, अनरेअलिस्टिक कहा जाने लगा था, journalism  के लिए सबसे जरुरी बात है की जो भी आपका कंटेंट रिसीव करे उसे यह पूरा विश्वास हो की आपका कंटेंट सिर्फ सच है और कुछ नहीं, शिकागो ट्रिब्यून के पब्लिशर रोबर्ट मक्कॉर्मिक ने अपने ट्रिब्यून टावर में दो अलग अलग एलिवेटर्स लगा रखे थे ऐसा इस लिए था की वो अपने एडवरटाइजिंग सेल्स टीम और एडिटोरियल टीम को एक साथ राइड करते हुए भी नहीं देखना चाहते थे

जब डिजिटल युग आया तो ज्यादातर मीडिया हाउस खास कर अख़बार छापने वाले घरानो ने डिजिटल के महत्व को नहीं समझा और डिजिटल की तरफ शिफ्ट करने पे खर्च करने के उल्ट अपने पुराने खर्चो में कटौती में लगे रहे, साल 2006  से लेकर साल 2012  के बीच अमेरिका में छपने वाले डेली अखबारों की सर्कुलेशन में 17 % तक की गिरावट दर्ज की गई तो वही संडे सर्कुलेशन 16 % तक गिरी थी यह आंकड़े अमेरिकन न्यूज़ पपेर्स एसोसिएशन ने जारी किये थे, ये जो रीडर्स लूस हुए थे वो ज्यादातर उस अख़बार के वेब वर्शन पर शिफ्ट हुए थे, पर मीडिया इंडस्ट्री के फाइनेंसियल स्ट्रक्चर को इससे कही ज्यादा धक्का लगा था, साल 2005  से साल 2013  के बीच प्रिंट मीडिया को एडवरटाइजिंग से होने वाले रेवेनुए में 55 % से ज्यादा की गिरावट दर्ज हुई थी अगर इसे सीधे आंकड़ों से मिलाया जाये तो यह प्रिंट मीडिया के रीडर्स के आंकड़े से तीन गुना से भी ज्यादा थी वही यह कुल रीडर शिप के आँकड़ों से मिलाया जाये तो यह 5  गुना के आस पास थी, ऐसा इस लिए हुआ था क्योकि प्रिंट से रीडर्स तो वेब पर शिफ्ट हुए थे पर विज्ञापन उतना शिफ्ट नहीं हो सका था, एक कारन यह ही था की रीडर्स अब  भी वेब मीडिया पर आने वाले विज्ञापन जो पॉप अप के रूप में हो या बैनर एड के रूप में हो को देखने में रूचि नहीं दिखा रहे थे साथ ही वेब में प्रतिस्पर्धा बहुत थी मतलब एक  समाचार दिखाने वाली बहुत सारी वेब मीडिया आचुके थे, सेन्सस बेउरो ने एक एनालिसिस जारी किया जिसे रोबर्ट मैक चेस्नी और जॉन निकोलस ने तैयार किया था जिसके मुताबिक जहा साल 1980  में पब्लिक रिलेशन्स वर्कर्स से journalist  का काम लेने का रेश्यो 1  से बढ़ कर 1.2  हुआ था एहि आंकड़ा साल 2008  में 1  से बढ़ कर 3.6 हो गया था ये भी एक कारन था जिसने journalism  को चोट पहुचानी शुरू कर दी थी

इंटरनेशनल हेराल्ड ट्रिब्यून के सीईओ रह चुके पीटर सी गोल्डमार्क जूनियर ने कुछ बहुत अच्छे सुझाव दिए थे जिससे प्रेस की स्वतंत्रता बनी रह सके, उनका कहना था की साल में एक बार एक जैसे फॉर्मेट में काम करने वाले मीडिया कम्पनीज के सीईओ को इकठा बैठ कर इस बात पर मंथन करना चाहिए की उनकी कंपनी में journalistic हेल्थ कितनी ठीक है, हर मीडिया हाउस को अपने बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स मेसे किसी एक को स्पेशल पावर देके काम देना चाहिए की की वो इस बात का ध्यान रखे की journalistic आधार पर मीडिया हाउस की स्वतंत्रता बनी रहे, साल में एक बार इस बात का भी ऑडिट करवाना चाहिए की पूरे साल में न्यूज़ रूम और न्यूज़ कंटेंट की स्वतंत्रता कितनी थी, एक जैसे फॉर्मेट में काम करने वाली मीडिया कम्पनीज को फण्ड जुटा कर एक स्वतंत्र कौंसिल की स्थापना करनी चाहिए जो प्रेस स्वतंत्रता को ट्रैक करे, प्रमोट करे, एक्सामिन करे और सबसे ज्यादा जरुरी इसे डिफेंड करे, इसी आधार पर साल 2002  में ब्रिटेन में The guardian media ग्रुप ने एक ऑडिट शुरू किया था जिसका नामरखा गया था ” living  our  values ” इसका मतलब जनता के सामने साफ़ तौर पर इस बात के सबूत रखना था की मीडिया हाउस की न्यूज़ और बिज़नेस स्ट्रक्चर कितने अलग अलग है मतलब जनता के सामने ये बात रखना था की मीडिया हाउस पर किसी भी तरह से journalistic एथिक्स के साथ समझौता करने का कोई दबाव नहीं था

साल 2005  में आई किताब we  the  media ” में dan  gillmor ने लिखा है की journalists  को objectivity  को छोड़ कर इसकी जगह thoroughness , accuracy , fairness और transparency  को स्थान देना चाहिए, ninteenth  सेंचुरी में journalists objectivity  की जगह पर realism को पहल देते थे, जब journalists  कुछ सूचना निकाल कर लाते और फैक्ट्स को सही आर्डर में पेश करते तो सच अपने आप उभर आया करता था, realism उस समय उभर कर सामने आया जिस दौर में journalism राजनीतिक पार्टियों से अलग हो रहा था और ज्यादा एक्यूरेट बन रहा था, जब हम objectivity  की सही समझ की तरफ बढ़ते है तो ये साफ़ हो जाता है की निष्पक्ष्ता journalism  की फंडामेंटल प्रिंसिपल नहीं है, यह सिर्फ एक आवाज़ और एक डिवाइस है जो सिर्फ फेयरनेस और एक्यूरेसी को दर्शाती है, फेयरनेस का मतलब है की journalist  स्टोरी के फैक्ट्स को लेकर और citizens की फैक्ट्स की अंडरस्टैंडिंग के प्रति भी फेयर है, journalist  को कभी नहीं चाहिए की वो पढ़ने और देखने वालों को मूर्ख बनाएं, यह कदम सीधे झूठ परोसने के समान होता है और इस बात को भी शक के दायरे में लाता है की journalism  सिर्फ सच सामने लेन का जरिया है या नहीं, स्टोरीज में अनोनिमस सोर्सेज का सहारा लेना पढ़ने वालों को खीज में लाता है और जनता का journalist  और उसकी reporting  पर भरोसा कमजोर करता है

fox  news  ने इस बात की मार्केटिंग की की वो एक निष्पक्ष और सच्ची आवाज़ है और यह बताने का काम करती है की लेफ्ट विचार धारा कितनी झूठी है

थोड़ा इस बात पर भी नजर डालते है की कब अमेरिकन मीडिया के एक वर्ग ने दुसरे से आगे निकलने के चक्कर में गलत खबर रिपोर्ट कर डाली थी बात है साल 2012  के दिसंबर माह में newtown  में की जब एक हमलावर ने एक स्कूल में अंधाधुंध गोलिया चलाते हुए 20  बच्चों की हत्या कर डाली थी, इस मामले की reporting करते हुए CNN  और न्यूयोर्क टाइम्स जैसे मीडिया के reporters  ने भी गलत खबर चला दी थी ख़ास कर सोशल मीडिया पर इन्ही लोगो ने गलत सूचना फैलाई थी, अभी पुलिस ने हमलावर की कोई सूचना नहीं दी थी पर पहले ही CNN की  reporter candiotti ने ट्विटर पर बताया की हमलावर  का नाम रयान लांज़ा है जो लगभग 20  साल का नौजवान है, न्यूयोर्क टाइम्स ने तो ये तक रिपोर्ट किया था की लांज़ा की माँ उसी स्कूल में टीचर थी और इस हमले में रयान लांज़ा ने अपनी माँ की भी हत्या कर दी है, पर सचाई यह थी की हमलावर रयान लांज़ा था ही नहीं हमलावर उसका भाई एडम लांज़ा था और उसकी माँ उस स्कूल में टीचर भी नहीं थी एडम ने अपनी माँ की हत्या पहले ही उसके घर में कर दी थी

लेखक ।  joshep campbell  ने अपनी किताब ” getting  It  wrong : ten  of  the  Greatest misreported  in  american  journalism ” में इस रिपोर्टिंग की खुलके आलोचन की है

कई बार reporting  journalist  को ही सस्पेक्ट बना देती है, ऐसा ही एक मामला है जब रिचर्ड जेवेल जो एक सिक्योरिटी अफसर थे  ने 1996  ओलंपिक्स से पहले पाइप बम पर एक स्टोरी लिखी जिसने पुलिस को आगाह किया, पहले तो रिचर्ड की हीरो जैसे तारीफ हुई पर बाद में पलिस ने रिचर्ड जेवेल को ही सस्पेक्ट मान कर उसकी जांच शुरू कर दी थी, ऐसा लगने लगा था की जेवेल खुद ही लोन बॉम्बर के प्रोफाइल में फिट बैठता था

journalist  को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की अगर वो किसी सोर्स को गुप्त रखते है और बाद में पता चलता है की सोर्स ने झूठ बोला था इसलिए  journalist  को चाहिए की वो पहले से इस बात की सूचना सोर्स को दे दें की अगर उसकी सूचना गलत निकली तो सोर्स की पहचान जनतक कर दी जाएगी ऐसा करने से सोर्सेज झूठी सूचना journalist  को देने से बचेंगे, अगर फिर भी कोई सोर्स झूंठी सूचना देता है तो journalist  को चाहिए की ऐसे सोर्स की पहचान जनतक कर दी जाए, journalist सबसे पहले स्टोरी में सोर्सेज का नाम लिख कर या बता कर इस बात को मजबूत करने की कोशिश किया करते थे की जनता को उनके द्वारा दी गई सूचना पर ज्यादा से ज्यादा भरोसा बना रहे

कई बार journalist को सूचना  इकठा करने के लिए सोर्सेज को मिसलीड तक करना पड़ता है,ध्यान रहे की ऐसा सिर्फ पब्लिक इंटरेस्ट के लिए ही किया जाना चाहिए, अगर जरुरत पड़े की किसी सचाई से जुडी स्टोरी को सामने लाने के लिए journalist  को छल का सहारा लेना पड़े तो वो जरूर ऐसा करे पर ऐसा सिर्फ स्टोरी के लिए ही किया जाना चाहिए, ऐसा करने के पीछे journalist  का कोई गलत मकसद नहीं होना चाहिए, ऐसा किया जाने के हाल में  journalist  को चाहिए की वो इसकी सूचना अपने ऑडियंस को जरूर दे और यह बात भी साफ़ करे की ऐसा करना  ही आखरी विकल्प क्यों था, साथ ही इस बात के सबूत भी जनतक करे की journalist  ने ऐसा कदम सिर्फ पब्लिक इंटरेस्ट में ही उठाया है, इसके बाद जनता पर निर्भर होगा की वो आखरी फैसला करे की journalist  द्वारा सोर्सेज से किया गया छल सही मकसद के लिए था या नहीं और journalist  को यह भी साबित करना चाहिए की उसकी लॉयलिटी किसके प्रति है

स्टोरी चेकलिस्ट: स्टोरी लिखने  के बाद कुछ बातों को डबल चेक करने से पहले जनतक नहीं करना चाहिए, आइए जानते हैं ये कौन कौन से पॉइंट्स हैं: ध्यान से देख लीजिये की स्टोरी की लीड क्या पूरी स्टोरी को सपोर्ट करती हैं या नहीं, क्या स्टोरी को पूरी तरह से समझने के लिए ऑडियंस को किसी बैकग्राउंड मटेरियल की जरुरत पड़ेगी या नहीं, क्या स्टोरी में सभी पक्षों की पहचान की गई है और क्या सभी पक्षों को तसल्ली से अपनी बात रखने का मौका मिला है या नहीं, क्या आप-ने स्टोरी में वो सभी चीज़ें डाली है जो स्टोरी को पूरी तरह से सही बनाती हैं, क्या किसी कंट्रोवर्शियल फैक्ट्स के लिए आपके पास मल्टीप्ल सोर्सेस हैं या नहीं, अगर आपने स्टोरी में कोई कोट्स डाले हैं तो उन्हें डबल चेक जरूर करें की कोट्स सही हैं या नहीं, क्या आपने स्टोरी में आए नामों, वेबसाइट्स, फ़ोन नम्बरों को डबल चेक किया है या नहीं, क्या आपने इस बात को चेक किया है की आपकी स्टोरी में आए रेफरेन्सेस के फर्स्ट एंड लास्ट नेम्स लिखे गए हैं या नहीं, स्टोरी में आए ऐज, एड्रेस और टाइटल्स सब सही है इस बात को भी डबल चेक जरूर करे, अपनी स्टोरी में टाइम और तारीख जरूर देते रहे इसको भी बाद में चेक जरूर करे

citizens को भी एक्टिव रहना चाहिए और रिपोर्ट लिखने वाले reporter  से स्टोरी पब्लिक होने के बाद सवाल पूछने चाहिए की आपने ये पर्टिकुलर बात क्यों लिखी, आपको यह बात कैसे पता लगी, आपके journalistic  प्रिंसिपल्स क्या हैं, ऐसा करने  में journalist  को भी जनता की मदद करनी चाहिए नहीं तो जनता सवाल करने में सकोच करेगी

एक अच्छा journalist  बनने के लिए राजनीतिक अनुभव अच्छी ट्रेनिंग मानी जाती है, journalist  को चाहिए की वो डिबेट को आमंत्रित करे इससे उनके आइडियाज मजबूत होते हैं, माइकल गेर्सन पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के लिए स्पीच लिखने  से पहले वाशिंगटन पोस्ट के लिए कॉलम लिखा करते थे माइकल गेर्सन कहते हैं की अपने विरोधी दाल से आर्ग्यूमेंट्स करना आपके अपने आइडियाज को मजबूत और इंटरेस्टिंग बनांते हैं

कम्युनिकेशन और journalism  दोनों इन्टरचेंजियेबल टर्म्स नहीं है, फ्रीडम ऑफ़ स्पीच और journalism  हर किसी के साथ जुड़े हुए हैं, कोई भी journalist  बन सकता है पर हर कोई journalist  नहीं है, अगर किसी के पास प्रेस कार्ड और ऑडियंस की लम्बी चौड़ी लिस्ट नहीं तो इसका कोई मायने नहीं है और इन सब चीज़ों से journalism की पहचान नहीं होती है, शोएब अथर एक आईटी प्रोफ़ेसनल थे जिन्होंने ओसामा बिन लादेन के खात्मे की खबर ट्विटर पर सबसे पहले लिखी थी जिसके बाद ही दुनिया को इस ऑपरेशन के बारे पता चल सका था, शोएब ने रिपोर्ट किया था की उन्होंने हेलिकॉप्टर्स की जो आवाज़ें सुनी वो असामान्य थी, जो गोली बारी वह हुई वो भी किसी रूटीन तालिबान ऑपरेशन से भी मेल नहीं खाती थी, इस रिपोर्टिंग के बाद ही इस ऑपरेशन का खुलासा हुआ था

वॉल्टेर लिपमैन अपने समय में कई सारे राष्ट्रपतियों के लिए स्पीच लिखा करते थे उन्होंने उस समय के राष्ट्रपति lyndon  johnson के लिए भी कई सारी स्पीच तैयार की थी ऐसे कई सारे सीक्रेट कामों की जानकारी जब सामने आई तो लिपमैन की छवि नष्ट हो गई थी, साल 2008  के चुनाव से पहले अमेरिका के कई सारे न्यूज़ एंकर जैसे की chris  matthews , paul  begala , donna  brazile  यह कहा करते थे की वो  बिलकुल किसी भी पार्टी के सपोर्टर नहीं है पर बाद में पता चला की यह लोग डेमोक्रेट्स नॉमिनेशंस के लिए या तो ओबामा या फिर hillary  clinton  को सपोर्ट करने या सलाह देने का काम कर रहे थे

ऐसे ही साल 2005  में बुश प्रशाशन ने ड्राफ्ट बनाने और सेकंड इनॉगरल स्पीच बनाने में कई सारे journalist  की सलाह ली थी जिनमे प्रमुख थे william  kristol  जो वीकली स्टैण्डर्ड से जुड़े थे और दुसरे थे charles  krauthammer  जो एक विवादित कॉलमिस्ट माने जाते हैं, इन दोनों ने कभी नहीं माना की इन्होने प्रशाशन की किसी स्पीच को तैयार किया था और यह माना की उन्होंने प्रशाशन की एक पालिसी मेकिंग में सलाह दी थी बस और कुछ नहीं किया, पर स्पीच के बाद इन दोनों ने स्पीच की पब्लिक के सामने भी खूब तारीफ की थी

हफ़्फिंगटन पोस्ट ने तो पोलिटिकल और अन्य सलेब्रिटीज के लिए अपने दरवाज खोल रखे हैं इसके पीछे उनका तर्क है की इन लोगो की एक लम्बी चौड़ी फैन लिस्ट होती है, वाइट हॉउस की प्रेस सेक्रेटरी रह चुकी dana perino और PAC एक्टिविस्ट karl  rove  फॉक्स न्यूज़ पर कमेंटेटर्स हैं, वही सिविल राइट्स एक्टिविस्ट AL  sharpton  का MSNBC  पर एक शो आता है, इसी तरह न्यू यॉर्क टाइम्स ने Todd  purdum  को क्लिंटन प्रशाशन को कवर करने की जिम्मेदारी दे रखी थी जिनका वाइट हाउस प्रेस सेक्रेटरी Dee  Dee  myers  के साथ रिश्ता था, जो बाद में एक विवाह में भी बदल गया, ऐसे ही एक ज़माने में टाइम्स की reporter laura  foreman  का ऐसे कुछ भ्रस्ट राज नेताओं के साथ प्रेम प्रसंग था जिन्हे वो रिपोर्ट कर रही थी जब ऐसे कुछ प्रेम प्रसंग की जानकारी सामने आई तो उस समय के टाइम्स एडिटर abe  rosenthal  ने कहा था की मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की आप का किसी हाथी  के साथ कोई प्रेम सम्बन्ध है पर तब तक जब तक आप सर्कस को कवर नहीं कर रहे हैं

ऐसे ही जब 90  के दशक में CNN  की फॉरेन कोरेस्पोंडेंट christiane  amanpour  जो कोसोवो कनफ्लिक्ट को कवर कर रही थी का प्रेम सम्बन्ध जेम्स रुबिन के साथ हो गया जो उस समय अमेरिकन स्टेट डिपार्टमेंट के spokesperson  थे इन दोनों ने बाद में एक दुसरे से विवाह किया था

अब थोड़ा बात करते है मीडिया के कमर्शियल होने पर, harwood  और minnery  कहा करते थे की अब मीडिया कंस्यूमर सोसाइटी की सेवा कर रहा है नाकि सिविल सोसाइटी की, चाहे अमेरिका हो या दुनिया को कोई भी अन्य देश हर जगह ज्यादा reporting  कमर्शियल मीडिया आउटलेट्स से ही आरही है,

Pew  research  center  से आए  एक डाटा के मुताबिक 66 % अमेरिकन लोग यह सोचते हैं की मीडिया के फैक्ट्स गलत होते हैं, वही 63 % अमेरिकन लोग सोचते हैं की मीडिया बायस्ड है, जब यह सवाल पुछा गया की वो ऐसा जब सोचते हैं तो किस मीडिया के बारे ऐसा सोचते हैं तो 63 % लोगों ने कहा की वो ऐसा फॉक्स न्यूज़ और CNN के बारे सोचते हैं

पर जब इस बात के लिए सर्वे किया गया तो एक दम से सब डाटा बदल गए, 30 % लोगों ने कहा की मीडिया गलत फैक्ट्स लेकर आता है, वही 49 % लोगों ने कहा की मीडिया बायस्ड है, पर जब ऐसा सोचने के लिए जिम्मेदार मीडिया हाउसेस की बात की गई तो लोगों ने कहा की लोकल न्यूज़ पेपर्स और लोकल टीवी चैनल्स ऐसी सोच बनाने के लिए जिम्मेदार हैं

टीवी और रेडियो reporter  john  Hockenberry कहते हैं की आप रेवेनुए को  डेमोग्राफिक आधार पर निश्चित कर सकते हैं पर कंटेंट को इस आधार पर बिलकुल नहीं कर सकते, रेसियल, एथनिक, धार्मिक, क्लास और विचारधारा journalist  को सूचित कर सकते हैं पर डिक्टेट बिलकुल नहीं कर सकते

मोनिका गुज़मान जो सीएटल टाइम्स के लिए कॉलम लिखती हैं का कहना है की ऐसी दुनिया जहाँ हर कोई न्यूज़ इकठा करने का काम कर सकता हो, स्वयं को सूचित करने वाले समुदायों को विकसित करना अपने आप में journalism का एक कार्य है

साल 1964  में Philadelphia  bulletin को इस लिए  pulitzer  prize  दिया गया की इस बुलेटिन ने एक ऐसे पुलिस अफसर को बेनकाब किया था जो अपने इलाके में एक नंबर रैकेट जो लोटो गेम जैसा था को चलाने में मिला हुआ था

ओरिजिनल इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग का सही मतलब है की जब reporter  कुछ ऐसी सूचना को जनता के सामने लाता है जो पहले जनता की पहुंच से बाहर थी, ऐसी सूचना जो सीधे जनता के जीवन को प्रभावित करती हो को इकठा करना और जनता को ऐसे ढंग से समझाना की आसानी से ज्यादा से ज्यादा लोगों को सूचन से जुड़े फैक्ट्स की समझ लग जाये, ऐसी reporting  के कानूनी नजर में सख्त सबूत इकठा करना बेहद जरुरी माना गया है, जबसे कंप्यूटर का युग आया है तब से इसने इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग को बदल कर रख दिया है अब किसी मामले को उस हद तक जांचा जा सकता है जिस हद तक एक रिपोर्टर की पर्सनल ऑब्जरवेशन काम नहीं कर सकती, ऐसे ही एक मामला साल 2010  में सामने आया जब las  vegas  sun ने एक सीरीज लाइ जिसका नाम रखा ” Do  no  harm ” इस सीरीज में कंप्यूटर आधारित तकनीक का इस्तेमाल करते  हुए लाखों  हॉस्पिटल्स के बिल रिकार्ड्स को जांचा गया जिसमे कई हजार ऐसी गलतियां पाई गई जिनसे बचा जा सकता था, ऐसे मजबूत सबूत हासिल कर पाना कंप्यूटर युग से पहले संभव नहीं हुआ करता था, इस सीरीज को आधार बना कर आगे चलके Nevada  legislature ने कुल 6  रिफार्म एंड ट्रांसपेरेंसी बिल पास किए

ऐसा ही एक अन्य मामला सामने आया जब न्यू यॉर्क टाइम्स ने साल 1971  में पेंटागन पेपर्स का विश्लेषण छापा, यह पेपर्स अमेरिकन सरकार की वियतनाम युद्ध में दखल और इस युद्ध में हुए नुक्सान का खुलासा था इस पेपर को हासिल करने के बाद न्यू यॉर्क टाइम्स के reporter  नील शीहान और अख़बार के कुछ एडिटर्स और अन्य एक्सपर्ट्स ने जनता को इस पेपर्स से जुडी सूचना को आसान करके समझाया इससे पहले अमेरिकन जनता के लिए इस पेपर से जुडी कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं थी

ऐसा ही अन्य मामला तब चर्चा का विषय बना जब न्यू यॉर्क टाइम्स ने एक सीक्रेट कांग्रेशनल रिपोर्ट को आधार बना कर एक स्टोरी लिखी जिसके मुताबिक एक अमेरिकन चीनी साइंटिस्ट wen  ho lee पर इल्जाम लगया की उनके जरिए चीन ने अमेरिकन न्युक्लियर प्रोग्राम से जरुरी सूचन इकठा करके चुरा ली है, अख़बार ने स्टोरी में ली का कही नाम नहीं लिखा था पर इस स्टोरी ने जाँच एजेंसियों को ली के खिलाफ जाँच कर मामला दर्ज करने के लिए प्रेरित किया इसके बाद ली को 1 साल जेल में भी रहना पड़ा, उसके खिलाफ लाइ गई 99 % काउंट्स मेसे एक में ली ने यह माना की उसने कुछ जरुरी नेशनल सिक्योरिटी इनफार्मेशन इकठा की थी, अख़बार ने अंत ने एक लम्बा करेक्शन माफीनामा भी छापा जिसमे अख़बार ने माना कि उन्होंने रिपोर्ट से मिली सूचना को ग्रांटेड ले लिया जिसके बाद ली को बेनिफिट ऑफ़ डाउट तक नहीं दिया गया जिसके लिए अख़बार ने यह करेक्शन माफीनामा छापा है

भारत की न्याय प्रक्रिया से जुड़े लोग जरा ध्यान दें, अमेरिका में एक केस हुआ जिसे near v minnesota के नाम से जाना जाता है इस केस में सुप्रीम कोर्ट के जज hugo  black  ने कहा की सिर्फ ऐसे आर्टिकल और ख़बरें जो अमेरिका की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकती हों को छोड़ कर किसी भी तरह की खबर पर रोक लगाने के लिए सरकार को अनुमति नहीं दी जा सकती, सुप्रीम कोर्ट ने कानून के दायरे में कुछ ऐसा सुरक्षा घेरा बनाया जिसमे रहते हुए journalist पब्लिक के पक्ष में रिपोर्टिंग कर सके और सरकार उनपर कोई कदम न उठा सके, जज hugo  ने कहा की प्रेस को इस बात के लिए सुरक्षा दी गई है की वो सरकार से जुड़े सीक्रेट्स जनता तक पहुंचाए, सिर्फ आज़ाद प्रेस ही सरकार की खामियों को जनता के सामने ला सकती है, इसी तरह 1960  और 1970  के दशक में प्रेस ने फ्रीडम ऑफ़ इनफार्मेशन एक्ट का इस्तेमाल करके बहुत सी सूचनाओं तक पहुंच बनाई थी जिसके बाद ही जनता को  सरकार से जुड़े कई सारे दस्तावेज और सूचनाएं मिली थी

ABC’s  20 /20  के एग्जीक्यूटिव प्रोडूसर रहे विक्टर नुफेल्ड ने कहा कि उनका दायित्व न्यूज़ डिलीवर करना नहीं है उनका  दायित्व एक अच्छी प्रोग्रामिंग करना है

साल 1997  में कोहुत ने पाया कि जनता को अब Reporters  द्वारा इस्तेमाल कि जा रही तकनीक पर एतराज़ है जैसे कि Reporters  सूचन इकठा करने के लिए सोर्सेज को पैसे देते हैं, Reporters  हिडन कैमरा का  इस्तेमाल करते है, मामलों कि कवरेज के दौरान Reporters  यह बात नहीं मानते कि वो reporter  हैं यह सब कुछ बातें हैं जिनको लेकर जनता को प्रेस से एतराज़ होने लगा है, जहाँ साल 1945  में 28 % लोग यह बात मानते थे कि मिलिट्री से जुडी कवरेज देश कि सुरक्षा को कमजोर कर रही है वहीँ साल 2005  में यह आंकड़ा 47 % तक पहुंच गया, इसके उल्टा  मीडिया द्वारा अमेरिकन सरकार कि  तरफ से इराक युद्ध में मिस हैंडलिंग कि आलोचना करना काफी पसंद किया गया, जनता चाहती है कि मीडिया नेताओं को वो सब करने से रोके रखे जो उन्हें नहीं करना चाहिए ऐसा सोचने वाली जनता का आंकड़ा साल 2003  में 54 % था जो साल 2005  में बढ़कर 60 % हो गया

investigative  reporter  susan  kelleher  कहती हैं की जब कोई सोर्स उन्हें इंटरव्यू देने के लिए तैयार होता है तो वो उस सोर्स को सब साफ़ बता देती हैं की investigative  reporting  में क्या क्या होता है, reporter  susan  कहती हैं की वो सोर्स को बता देती है की वो कैसे काम करती हैं, साथ ही पहले से बता देती है की सोर्स को ऑन रिकॉर्ड जाना होगा, susan  सोर्स को बता  देती हैं की वो सोर्स के बारे और लोगों से भी पूछेंगी ऐसे हाल में भी की सोर्स उन्हें अच्छा भी साबित हो रहा हो, susan  कहती है की वो सोर्स को कह देती हैं की एक बार अगर आप इंटरव्यू के लिए तैयार हो गए तो आपके कण्ट्रोल में कुछ नहीं रहता पर यह बात सोर्स के हाथ में रहती है की वो कितना बताना चाहता है, susan  कहती हैं की एक बार सोर्स ने उन्हें कुछ बता दिया तो यह सब ऑन रिकॉर्ड हो जायेगा ऐसे हाल में अगर कोई बात सोर्स उन्हें न बताना चाहे तो वो सोर्स की मर्जी होगी

susan  की अपने सोर्सेज के साथ ईमानदारी ने उन्हें एक ऐसी स्टोरी करने में मदद की जिसमे कुछ फर्टिलिटी से जुड़े डॉक्टर्स अपने कुछ पेशेंट्स से गैरकानूनी ढंग से एग्स चुरा के अन्य पेशेंट्स को बेच रहे थे, इस मामले पर susan  ने जो स्टोरी की वो जरुरी सबूतों के आधार पर थी साथ ही कई ऐसे सोर्स भी ऑन रिकॉर्ड आए जो इस मामले से सीधे जुड़े थे ऐसा susan  का अपने सोर्सेज पर मजबूत भरोसा जीतने की वजह से संभव हो सका, बाद में susan  को इस स्टोरी के लिए pulitzer  prize  भी मिला

the  guardian  इंग्लैंड में reporter , एडिटर सभी यह एक्सपेक्ट करते हैं की ट्विटर ओपन रहे जिससे उन लोगो को यह पता चलता रहे की अन्य लोग उस मामले पे क्या कहते है जिसे वो कवर कर रहे हैं वो अपनी स्टोरी पर जनता की राय जानना चाहते है

journalism  के मामले में भी कोई एक ऐसा प्लेटफार्म होना चाहिए जिसपर जनता कि तरफ से होने वाली आलोचन जानी जा सके, आज के  दौर में यह बात और जरुरी हो जाती है की पब्लिक डिस्कशन भी journalism  के बेसिक प्रिंसिपल जैसे की सचाई, फैक्ट्स और वेरिफिकेशन के आधार पर ही बिल्ट हो, यह प्लेटफार्म पूरी कम्युनिटी के लिए होना चाहिए नाकि बस उन लोगो के लिए जो सोशल मीडिया पर ज्यादा एक्टिव रहते हैं, जो लोग ज्यादा बोलते हैं या सिर्फ वो लोग जो डेमोग्राफिकली अट्रैक्ट करते हैं उन लोगो को जो प्रोडक्ट और सर्विसेज की मार्केटिंग करते हैं

पब्लिक फोरम ब्रॉड एरिया ऑफ़ एग्रीमेंट को इंक्लूड करे जहाँ ज्यादा से ज्यादा जनता हो, ताकि जनता की समस्या का हल मिल सके

एक अखबार जो अपने समुदाय को गहराई से प्रतिबिंबित करने में विफल रहता है वह सफल नहीं होगा, लेकिन एक अखबार जो अपने समुदाय के मूल्यों और पूर्व धारणाओं को चुनौती नहीं देता है, वह उस ईमानदारी और नेतृत्व को प्रदान करने में विफल होने के लिए सम्मान खो देगा जिसकी अखबारों से उम्मीद की जाती है।

journalism एक स्टोरीटेलिंग है जो किसी मकसद के आधार पर हो, इसका मकसद होता है लोगो को वो सूचना देना जो लोगो के लिए दुनिया दारी के बारे जानने के लिए जरुरी हो, पहली चुनौती यह रहती है

कि ऐसी सूचना को ढूंढना जो लोगो को जीने के लिए जरुरी हो, दूसरी चुनौती होती है सूचना को ऐसे ढालना कि वो मीनिंगफुल, रेलेवेंट और पढ़ने और देखने वाले को बाँध कर रख सके ताकि वो पूरी स्टोरी को पढ़े, सुने या देखे

अगर आपको लगता है कि आपने कोई ऐसी सूचना ढूंढी है जिसे आप जब तक अन्य लोगो के साथ साँझा करने का पहले रास्ता नहीं निकाल लेते और फिर लोगो के साथ साँझा नहीं कर लेते आपको संतुष्टि नहीं मिलती तो मान लीजिये कि आप journalist हैं, journalism कि जिम्मेदारी सूचना लोगो तक पंहुचा देने तक ख़त्म नहीं होती यह तब पूरी होती है जब आप सूचना ऐसे पेश करते है कि यह लोगो का पूरा झुकाव अपनी तरफ खींच ले, journalism कि यह भी जिम्मेदारी रहती है कि चुनना, अलग करना, क्या पेश करना है क्या नहीं, ऐसा कौनसा टूल जनता को देना है जो जनता कि इस बात के लिए मदद कर सके कि वो अपने आप स्टोरी के थ्रेड को खोज निकाले

पुराने समय में लोग न्यूज़ जानने के लिए अपना बेहेवियर बनाते थे जैसे कि लोग शाम 6.30 पर न्यूज़ सुनने के लिए टीवी के सामने खुद बैठ जाते थे और लोग सुबह अख़बार पढ़ने का समय निकाला करते थे पर अब टेक्नोलॉजी ने यह सब बदल दिया है इस बात को हर journalist को जान लेना चाहिए, ऐसे ही साल 2013 में इंग्लैंड में deloitte ने एक ऑडियंस सर्वे किया जिसमे पाया कि हैंडहेल्ड उपकरणों के आने के साथ सर्वेक्षण में शामिल 89% लोगों ने अब अक्सर ऑनलाइन समाचार प्राप्त किए हैं,

project for excellence in journalism ने एक सर्वे में पाया कि जो स्टेशन छोटी स्टोरीज कर रहे थे उन्होंने अपने ऑडियंस गवां दिया वहीँ जो स्टेशन बड़ी स्टोरीज कर रहे थे उन्होंने अपने ऑडियंस में वृद्धि कि है

poynter institute ने एक eye tracking study की जिसमे पाया कि 61% वो लोग जो मोबाइल पर स्टोरीज पढ़ते हैं उन्होंने लम्बी स्टोरीज पढ़ी, वहीँ ऐसा करने वालों 73% लोगों ने लम्बी स्टोरीज टेबलेट्स पर पढ़ी

this american life जो रेडियो के लिए स्टोरीज ब्रॉडकास्ट करता है का कहना है कि उसके एक ऑडियो शो जिसकी लम्बाई 60 मिनट्स थी को एवरेज सुनने वाले लोगो ने 48 मिनट्स सुना मतलब ज्यादा लोग 48 मिनट्स तक जुड़े हुए थे, यह बात इस धारणा को ख़ारिज करता है कि आज के समय में जहाँ मीडिया ऑप्शन्स बहुत ज्यादा है ऐसे में लम्बी स्टोरीज को बहुत कम सुना जाता है, मतलब साफ़ है लम्बी स्टोरीज को सुनने, पढ़ने और देखने वालों कि गिनती बहुत ज्यादा है, the american life एक सप्ताह में कुल पर एपिसोड 3 स्टोरीज करता है जिसके जरिये 1.7 मिलियन लोगो तक पहुँचता है

journalist याद रखे की मनोरंजन, स्कैंडल, सेलिब्रिटी वो सबसे आसान जरिए हैं जो ऑडियंस को स्टोरी की तरफ खींचते हैं, मनोरंजन से जुडी ज्यादा स्टोरीज करने वाले न्यूज़ हाउस की एक ऐसी छवि बना देता है की यह मीडिया हाउस जरुरी और सीरियस मामलों की reporting करने में विफल है जिससे वो ऑडियंस जो सीरियस न्यूज़ चाहती है वो ऐसे मीडिया हाउस से दूर चली जाती है,

newslab ने एक सर्वे किया जिसमे पाया की ऑडियंस ने 7 मेसे 5 ऐसे कारण अलग अलग ढंग से बताये जिनका मतलब एक ही था की टीवी चैनल पर अब सही पदार्थ नहीं रहा, बाकी दो कारन थे की ऑडियंस बहुत बिजी थी और ऑडियंस घर पर नहीं थी जिस वजह से टीवी न्यूज़ नहीं देख सकी

insite research के डाटा के मुताबिक सर्वे में शामिल किये गए आधे से ज्यादा लोगों ने कहा की उनका टीवी न्यूज़ से मोह भंग होने का एक कारण एक स्टोरी को बार बार चलाना भी है, मनोरंजन कंटेंट के जरिए आप एक ऐसी ऑडियंस खड़ी करते है जो बनती तो बहुत जल्दी है जो जल्दी और कम समय के लिए अच्छा बिज़नेस भी दे जाती है पर ऐसी ऑडियंस बहुत जल्दी किसी अन्य चैनल पर चली जाती है क्योकि यह ऑडियंस उत्तेजना के दम पर खड़ी की गई थी जो कभी ज्यादा देर तक नहीं टिक सकती, आजकल journalists वहीँ कंटेंट जो न्यूज़ पेपर या टीवी के लिए बना था इंटरनेट पर भी पोस्ट करने लगे है जो एक दम गलत कदम है इंटरनेट एक अलग प्लेटफार्म है इसके लिए अलग कंटेंट बनाना चाहिए

एक अच्छी स्टोरी बनाना ड्राफ्टिंग, वीडियो एडिटिंग या कंटेंट एडिटिंग बिलकुल नहीं होती, एक अच्छी स्टोरी तब बनती है जब reporter बाहर जाता है और ग्राउंड पर रिपोर्ट करता है, अलग अलग लोगो से मिलता है, अलग अलग सवाल पूछता है तब जाके अच्छी स्टोरी बनती है,

larson कहते हैं कि “एक अच्छी स्टोरी आपको सचाई की तरफ बढ़ने के लिए प्रेरित करती है, सच दिखाती या पढ़ाती नहीं है”

krulwich ने हमेशा कोशिश कि है कि हर स्टोरी मेसे कोई छुपा हुआ पदार्थ निकाल के जनता के सामने रखा जा सके ताकि स्टोरी लम्बे समय तक याद की जा सके और स्टोरी बिल्कु ईमानदार भी लगे,

tampa times एक वेबसाइट चलाती है जिसका नाम है politifact और काम है राजनीतिक फैक्ट चेकिंग जो यह चेक करके बताती है की किसी राजनेता द्वारा दी गई स्टेटमेंट कितनी सही और कितनी झूठी है

journalist याद रखे की टेक्नोलॉजी स्टोरी के फैक्ट्स को काटने छंटने न पाए, हमेशा याद रहे की जो स्टोरी जनता के सामने रख रहे है वो सिर्फ सच पर आधारित है, नागरिक जुड़ाव और प्रासंगिकता के

सिद्धांतों का उपयोग किसी भी पत्रकारिता(journalism ) के मूल्य का न्याय करने के लिए कर सकते हैं, journalism हमारी मॉडर्न कार्टोग्राफी है। यह नागरिकों के लिए समाज को नेविगेट करने के लिए एक मानचित्र बनाता है, citizens journalist से 3 सवाल पूछ सकते है, पहला की क्या आपकी स्टोरी में शामिल पूरी कम्युनिटी को मैं देख सकता हु जो कवरेज में ली गई थी, दूसरा सवाल क्या मैं इसमें हु, तीसरा की क्या रिपोर्ट में वह उचित मिश्रण(मिक्स) शामिल है जिसे अधिकांश लोग दिलचस्प या महत्वपूर्ण मानेंगे

अगर हम सोचते हैं कि journalism सामाजिक cartography के रूप में है, तो मानचित्र में हमारे सभी समुदायों के समाचार शामिल होने चाहिए, न कि केवल वे जनसांख्यिकी वाले जो विज्ञापनदाताओं के लिए आकर्षक हैं

एक समय टीवी चैनल्स ने टारगेट ग्रुप्स के हिसाब से शो बनाने शुरू किये थे जिसमे जवान लोगों की पसंद का ख़ास ख्याल रखा जाता था, इस बात की भी सोच बनी थी किसी भी खरीद को सबसे ज्यादा प्रभावित औरते करती हैं, ऑडियंस डाटा यह बात साबित करते हैं की यंग लोग सबसे ज्यादा न्यूज़ जानने के लिए उत्सुक रहते हैं पर पुरानी टेक्नोलॉजी और पुराने ढंग से बिलकुल भी नहीं

वेब टेक्नोलॉजी आने के बाद न्यूज़ पढ़ने वालों की गिनती काफी बढ़ी है, एक सर्वे के मुताबिक साल 2013 में प्रिंट न्यूज़ रीडर की एक एवरेज उम्र थी 54 साल थी, मतलब एक अधेड़ उम्र के ज्यादा लोग अख़बार पढ़ा करते थे, वहीँ मोबाइल पर न्यूज़ पेपर कंटेंट पढ़ने वालों की एवरेज उम्र 37 साल थी, वहीँ चौथाई हिस्सा लोगों ने कहा की वेब के आने के बाद उन्होंने ज्यादा न्यूज़ पढ़नी शुरू की है, वहीँ सिर्फ 10% लोगों ने ही कहा की वो अब कम न्यूज़ पढ़ते हैं, वहीँ जो लोग जो लोग अब मोबाइल डिवाइस इस्तेमाल करने लगे थे मेसे 32% ने कहा की वो अब ज्यादा न्यूज़ पढ़ते है और सिर्फ 8% ने कहा की वो अब कम न्यूज़ पढ़ते हैं

एक समय आया जब टीवी न्यूज़ चैनल्स सुबह के समय सबसे ज्यादा जोर ऐसा प्रोग्राम चलाने पर देते जो सेलिब्रिटी, एंटरटेनमेंट और प्रोडक्ट प्रमोशन से जुड़े होते, रात के समय सिविक इंस्टीटूशन्स से जुडी खबरे कम हो गई थी और ज्यादा से ज्यादा एंटरटेनमेंट प्रोग्राम आने लगे थे पर यह सब 11 सितम्बर 2001 के हमले के बाद बदल गया, CBS न्यूज़ ने हार्ड न्यूज़ जैसे सरकार और विदेश नीति से जुड़े शो चलाने शुरू किये तो वही ABC न्यूज़ ने लाइफस्टाइल से जुड़े शोज पर जोर जारी रखा और NBC  न्यूज़ ने बीच का रास्ता चुना और मिले जुले प्रोग्राम चलाने शुर कर दिए थे, इसके इलावा न्यूज़ चैनल्स ने ऑडियंस के इमोशंस पर टारगेट करना शुरू किया ताकि इमोशंस के जरिये ज्यादा से ज्यादा ऑडियंस का ध्यान शो की तरफ खींच सके, इमोशंस जैसे की डर शब्द का इस्तेमाल करना, शो में यह बात हाईलाइट करना की “हर अभिभावक के लिए बहुत सीरियस चेतावनी जो हर अभिभावक को सुननी चाहिए” का इस्तेमाल बहुत तेजी से होने लगा

इस बात का ध्यान रखना चाहिए की जबसे डिजिटल मीडिया आया है तबसे ऑडियंस न्यूज़ कास्ट से ज्यादा स्टोरीज की मांग करने लगे हैं

PEW researchers ने एक स्टडी की जिसमे लोगों से पुछा की क्या वो सरकार से जुडी सीरियस न्यूज़ जानना चाहते हैं तो 29% लोगों ने कहा की वो ऐसी रिपोर्टिंग सुनने में काफी रूचि रखते हैं पर जब लोगो से पुछा गया की क्या वो ऐसी रिपोर्टिंग सुनना चाहेंगे जिसमे हो की कौन कौन सी समस्या हैं जिन्हे सरकार के सामने हल करने लिए रखा गया है तो लोगों ने रूचि दिखाई की ऐसी रिपोर्टिंग दिखाई जाये जिसमे यह बताया जाये की सरकार लोकल स्कूलों की बेहतरी के लिए क्या क्या कर सकती है ऐसी रिपोर्टिंग सुनने के लिए 59% लोगों ने हामी भरी, जब पुछा गया की अगर आपको ऐसी रिपोर्ट दिखाई जाये जिसमे यह बात की जाये की सरकार क्या कर सकती है जिससे सार्वजनिक स्थान आतंकियों से सुरक्षित हो सकें तो लगभग 67% लोगों ने ऐसी रिपोर्ट देखने में रूचि दिखाई

हमेशा ऐसा नहीं होता की किसी मशहूर स्टोरी को चलाने से ज्यादा ऑडियंस मिलेगी ही, बहुत ज्यादा ऑडियंस पाने के लिए अलग अलग मुद्दों पर अच्छी स्टोरीज चलानी होंगी जिनको पढ़कर/ सुनकर ऐसा लगे की इस मीडिया के पास ऐसा कुछ है जो सबके लिए है

journalism चरित्र से जुड़ा एक्ट है, इसपे कोई लाइसेंस, कोई पालिसी, कोई नियम, कोई कानून नहीं लगाए जा सकते, जो भी इम्पोज़ किया जायेगा वो journalism को कमजोर करेगा, journalism न्यूज़ इकठा करने वाले और न्यूज़ पब्लिश करने वाले के एथिक्स से सीधा जुड़ा है की वो कितना सही न्यूज़ इकठा करते हैं और जनता के सामने पेश करने में कितने ईमानदार हैं, ख़ास कर ऐसे समय में जब न्यूज़ पब्लिश करना व्यक्तिगत एक्ट है

wob woodward का कहना है की जब वह watergate के मसले को कवर कर रहे थे तब उनपर कई तरफ से दबाव था पर wob कहते हैं की दबाव के समय में की गई reporting सबसे अच्छी reporting  होती है

carol marin कहती हैं की journalism पर कोई कानून नहीं लागु हो सकता इस लिए यह बात journalist के विवेक पर निर्भर करती है की उसे क्या लिखना है और क्या नहीं, यह बात journalist  को खुद तय करनी होती है की उसे कैसी reporting करनी है

7  जुलाई 2005  को लंदन के सबवे में 3  बम ब्लास्ट हुए इससे ठीक पहले एक डबल डेकर बस में धमाका हुआ था, इस हमले में 52  लोगों की मौत हुई थी, इसके बाद बीबीसी को लगा कि इस  मामले को गहराई से रिपोर्ट करना चाहिए तो बीबीसी के न्यूज़ डायरेक्टर richard  sambrook ने लोगो से इनपुट्स मांगे जिसके बाद इस मामले जुड़े 20  हजार ईमेल, 4000  टेक्स्ट मैसेज, 1000  फोटो, 20  वीडियो क्लिप्स, बीबीसी को citizens  ने भेजे और वो भी हमले  के सिर्फ 6  घंटे के बाद का यह आंकड़ा है, न्यूज़ के मामले में बीबीसी लम्बे समय से citizens की मदद मांगता रहा है पर इस बार के आंकड़े बहुत ज्यादा थे इन आंकड़ों ने बीबीसी को मामले की कवरेज में सबसे आगे लाके खड़ा कर दिया, citizen  journalist और professional  journalist  दोनों एक दुसरे को रिप्लेस करने लिए बिलकुल नहीं है, इसके उल्ट दोनों मिलकर काम करने के लिए हैं, citizen  journalist  professional  journalist  के काम को रेप्लिकेट नहीं कर सकता, citizen  journalist  professional  journalist  की सूचना को काफी बढ़ा देता है, कई मामलों में तो citizen  journalist  ही professional  journalist  को बेसिक सूचना देता है

journalism  का पहले मकसद हुआ करता था की जनता को सोचना पहुंचना खास कर उन इंस्टीटूशन्स से जुडी सूचना मुहैया करवाना जो सिस्टम को चलाते हैं जैसे सीधे तौर पर सरकार से जुडी सूचना, पर अब समय बदल गया है ऐसे समय में जनता को वो टूल्स journalism  को ही मुहैया करवाना होगा जो जनता को सही सूचना जो ऐसी एक बाढ़ में कही छुपी हुई है ये बाढ़ है प्रोपेगंडा, विज्ञापन, गॉसिप, फैक्ट्स और गलत सूचना की, के पास ले जाये, journalist  की यह भी जिम्मेदारी है की वो जनता को सूचन की बाढ के बारे जागरूक करना जिससे जनता सही सूचना को निकाल सके

इसके आगे का कदम है की कोम्मुनिटी मेसे ही ऐसे लोगों की पहचान करे जो journalists  को सूचन मुहैया करवाने में मदद कर सके, यह काम minnesota  public  radio  ने साल 1990 में किया था रेडियो ने अपने सुनने वालों का उनके ज्ञान और खूबियों के आधार पर अलग अलग ग्रुप्स बनाये और फिर अलग अलग ग्रुप्स से उनकी नॉलेज और एक्सपर्टइस के आधार पर अलग अलग किसम की स्टोरीज के सुझाव मांगे

new  york  times  और texas  tribune  जैसे कई ग्रुप्स है जो किसी स्टोरी से पहले स्टोरी कर रहे Reporter और Editors  को ऑडियंस से सुझाव लेने का काम करने लिए कहते हैं यह ग्रुप्स journalistic  एथिक्स और स्टैण्डर्ड के बारे भी अपने ऑडियंस से सलाह मश्वरा करते रहते हैं

न्यूज़ सिर्फ कंटेंट की तरफ ध्यान खींचने का नाम नहीं है यह तो ऑडियंस को मामले पर सोचने पर मजबूर करने का काम भी करती है

किसी भी स्टोरी से जुड़े सबूत जानना जनता का अधिकार है, ऐसी कोई भी स्टोरी जो किसी एक सोर्स के पॉइंट ऑफ़ व्यू और इंटरेस्ट पर आधारित हो वो न्यूज़ होकर एक प्रोपेगंडा है, journalist  को जितना ज्यादा हो सके न्यूट्रल रहना चाहिए, journalist  को किसी भी ऐसे पक्ष के लिए स्पीच लिखने और सलाह मश्वरा देने का काम करने से हर हाल में बचना चाहिए जिसे वो कवर कर रहा हो

जनता को न्यूज़ प्रोवाइड करने वालों से यह आस रखने का पूरा अधिकार है की वो न्यूज़ प्रोवाइडर्स  से कई सारे चैनल्स के जरिये बात कर सके जैसे की ऑनलाइन फोरम के इलावा ईमेल के जरिये सवाल जवाब करना, सीधे फ़ोन के जरिए बात चीत करना, ऑनलाइन सवाल जवाब आदि  सबसे अच्छे विकल्प रहते हैं

अगर एक सिटीजन के तौर पर आपको मीडिया हाउस से आपको आपके अधिकार नहीं मिलते तो आपको क्या करना चाहिए यह भी जान लीजिये, आप अगर आपकी बात इग्नोर हुई है तो अपनी कोशिश दोहराइए जैसे की अगर आपको ईमेल का जवाब नहीं मिला है तो एक और ईमेल दुबारा भेजिए, अगर फिर भी कोई जवाब मिले तो फ़ोन कॉल करिए या फिर एक चिठ्ठी लिखिए जिसमे कॉपी एडिटर को कीजिये, अगर आप अपनी कोशिशों का कोई पब्लिक रिकॉर्ड रखना चाहते हैं तो अपनी कांटेक्ट हिस्ट्री और इसके जवाब में मीडिया हाउस का जो भी रिएक्शन मिला हो उसको ब्लॉग पर पब्लिश करिए,

मीडिया हाउस से आपको आपके अधिकार मिलने की सूरत में आप उक्त मीडिया हाउस में विजिट्स बंद कर सकते हैं, अगर कोई सब्सक्रिप्शन  लिए हैं तो उन्हें छोड़ सकते हैं, अगर कोई एप्प डाउनलोड कर रखा है तो उसे डिलीट कर दीजिये, और हो सके तो उक्त मीडिया को वॉच करना बंद कीजिये, सबसे जरुरी यह सब करने के बाद यह सब साफ़ साफ़ मीडिया हाउस के मैनेजमेंट को लिखिए की आपने ऐसा क्यों किया है और अंत में ये सब मीडिया क्रिटिक्स को भी लिख दीजिये, और अगर आपकी कोई अपनी साइट है तो उस पर भी डाल दीजिये



sources: www.americanpressinstitute.org, www.aspireias.com, www.studocu.com, www.penguinrandomhouse.com

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