col. pushpinder singh bath case: punjab and haryana high court ने कर्नल द्वारा करवाई गई FIR के साथ साथ ढाबा मालिक द्वारा करवाई गई FIR को भी cbi investigations के लिए भेजा

 जालंधर (18/07/2025): पंजाब के पटियाला शहर में 12 और 13 मार्च 2025 की रात को कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ अपने बेटे के साथ पटियाला के सरकारी राजिंद्र हॉस्पिटल के सामने एक ढाबे पे कुछ खाने के लिए रुके तो वही कुछ पुलिस वाले जो सिविल ड्रेस में थे आए और कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ से बोले जल्दी अपनी गाड़ी हटवा लो ये गलत जगह पे खड़ी है, कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ के वकीलों ने अदलात को बताया की पुलिस वालों ने कर्नल साहिब से कहा गाड़ी हटा लो वरना तुम्हारी टाँगे तोड़ दी जाएँगी, बस एहि से दोनों पक्षों में कुछ कहा सुनी शुरू हो गई जिसके नतीजे में पुलिस टीम ने कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ और उनके बेटे अंगद बाठ पे ऐसा जान लेवा हमला किया की दोनों पिता पुत्र को कई सारी गंभीर चोटें आई, इसके बाद कर्नल परिवार ने इन्साफ की गुहार लगाई पर पंजाब सरकार के कानो पे जूं तक नहीं रेंगी, फिर मीडिया और पंजाब की जनता  साथ आई और परिवार के साथ सब सड़क पे उतरे पर तब भी कुछ नहीं हुआ, मामले में ऍफ़ आई आर ही 8 दिन देरी से दर्ज की गई, इसी बीच घटना के दो दिन बाद ही ढाबा वाले की शिकायत पर कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ और उनके पुत्र पे ही एक मामला दर्ज कर दिया गया, इसके बाद पीड़ित कर्नल परिवार हाई कोर्ट पंहुचा, हाई कोर्ट ने मामले की जांच पंजाब पुलिस से लेकर चंडीगढ़ पुलिस को दे दी और जांच के लिए 4 माह का समय भी दिया, अब हाल ही में कर्नल परिवार फिर से हाई कोर्ट पंहुचा और अदालत को बताया की समय सीमा क़े 4 माह अब पूरे होने को हैं और चंडीगढ़ पुलिस ने न तो किसी भी आरोपित को गिरफ्तार किया है और न ही जांच में कोई प्रोग्रेस हुई है, इसके बाद हाई कोर्ट ने सभी पक्षों को सुना और मामले की जांच चंडीगढ़ पुलिस से वापिस लेकर सीबीआई को देदी 

इस बार जब दूसरी रिट लेकर कर्नल परिवार हाई कोर्ट पंहुचा तो पूरी सुनवाई की दौरान कुछ ऐसी बातें हुई हैं जिन्हे अभी तक किसी भी मीडिया ने डिटेल में डिसकस नहीं किया है, हमें लगता है की इन सभी जरुरी बातों पे बात होनी चाहिए ख़ास कर उन सवालों क़े बारे जनता को पता होना चाहिए जो इस दूसरी रिट की दौरान सामने आए हैं  

कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ क़े वकील ने हाई कोर्ट को बताया की एमएलआर रिपोर्ट क़े मुताबिक कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ को 5 इंजरीज हुई हैं जिनमे से एक इंजरी फ्रैक्चर है और कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ क़े पुत्र अंगद बाठ को कुल 8 इंजरीज हुई हैं ऐसे में जांच कर रही चंडीगढ़ पुलिस ने ऍफ़ आई आर मेसे धारा 109 BNS(पहले IPC 307 हुआ करती थी) डिलीट ही कर दी है 

आगे कर्नल क़े वकील ने कहा की हाई कोर्ट ने अपने पिछले आर्डर में चंडीगढ़ पुलिस क़े DGP को साफ़ कहा था की चंडीगढ़ पुलिस एसएसपी रैंक क़े अधिकारी से ही मामले की जांच करवाए, जबकि चंडीगढ़ पुलिस क़े DGP ने मामले की जांच एस पी  मंजीत शेरोन को देदी जो एसएसपी रैंक क़े नहीं है ऐसे में है कोर्ट क़े ऑर्डर्स क़े हिसाब से कम्पीटेंट अधिकारी से जांच नहीं करवाई गई है

जब चंडीगढ़ पुलिस क़े वकीलों क़े बोलने की बारी आई तो उन्होंने कहा की एक आरोपित इंस्पेक्टर रोनी सिंह की जमानत हाई कोर्ट से रद होते ही सभी आरोपियों को गिरफ्तार करने क़े लिए चंडीगढ़ पुलिस ने रेड की थी, पर कोई भी पुलिस क़े हाथ नहीं लग सका, इसके बाद इन वकीलों ने अदालत से कहा की चंडीगढ़ पुलिस ने एक डॉक्टर की रिपोर्ट हासिल की है जिसके मुताबिक कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ और उनके पुत्र अंगद बाठ को जो भी इंजरीज हुई है वो जान लेवा नहीं है इस लिए धारा 109 BNS(section 307 IPC) नहीं बनती है, अब चंडीगढ़ पुलिस क़े वकीलों क़े मुताबिक चंडीगढ़ पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार करने क़े लिए रेड की थी फिर एहि वकील कहते हैं की मामले में लगी चोटें जान लेवा नहीं हैं ऐसे में सवाल खड़ा होता है तो आरोपियों को गिरफ्तार करने किया क्या जरुरत थी और रेड्स क्यों की गई थी यहाँ इन वकीलों की दोनों बातें एक दूसरे का विरोध करती है, मतलब साफ़ है चंडीगढ़ पुलिस की नियत पे सवाल उठने लाजमी हैं

इसके बाद जब बोलने की बारी पंजाब सरकार क़े वकीलों की आई तो इन वकीलों ने कहा की मामले की जांच सीबीआई को नहीं दी जानी चाहिए अब यहां सवाल उठता है की मामले की जांच अगर सीबीआई करेगी तो इसमें पंजाब सरकार को एतराज क्यों है???

इस सुनवाई क़े दौरान जब अदालत ने पंजाब पुलिस से पुछा की आपने कर्नल पुष्पिंदर सिंह बाठ की शिकायत पे ऍफ़ आई आर 8 दिन देरी से दर्ज की और वहीँ ढाबा वाले की शिकायत पर ऍफ़ आई आर दो दिनों क़े बाद मतलब 15/03/2025 को ही क्यों दर्ज कर दी गई थी इस सवाल का पंजाब सरकार क़े वकीलों क़े पास कोई ढंग का जवाब नहीं था 

अदालत ने कहा की ऍफ़ आई आर मेसे धारा 109 BNS(सेक्शन 307 IPC) डिलीट करना ये साबित करता है की जांच कर रही एजेंसी की नियत कैसी है, अदालत ने कहा की फ्री एंड फेयर इन्वेस्टीगेशन क्रिमिनल ट्रायल की बैक बोन होती है, ऐसे में अगर इन्वेस्टीगेशन शक क़े दायरे में होगी तो मामले का ट्रायल सही नतीजे तक नहीं पहुंच सकता है

आगे अदालत ने कहा की ऐसा लगता है की खुद ही इन्वेस्टीगेशन एजेंसी जांच में लूपहोल्स बनाना चाहती है, ऐसा भी लग रहा है की ये जांच एजेंसी ही केस को इतना कमजोर कर देना चाहती है की जब केस की चार्ज शीट अदालत में जाये तो मामला टिक न सके, जांच का मकसद होता है सच को सामने लाना न की किसी फैक्ट्स को दबाना

आगे अदालत ने इस बात पे जोर दिया की फ्री एंड फेयर इन्वेस्टीगेशन का हक़ संविधान क़े आर्टिकल 21 क़े तहत आता है, अदालत ने कहा की इन्साफ दिया जाना ही काफी नहीं है बल्कि इन्साफ दिया गया है दिखाई भी देना चाहिए, अपनी बात को ख़त्म करते हुए अदालत ने कहा की चंडीगढ़ पुलिस की जांच दूषित है इसलिए पूरी जांच सीबीआई को दी जाती है

अपने आर्डर क़े अंत में अदालत ने एक और जरुरी कदम उठाया है अदालत ने मामले में दर्ज ऍफ़ आई आर नंबर-65 जो की ढाबा मालिक की शिकायत पर दर्ज की गई थी को भी जांच का हिस्सा मानते हुए सीबीआई को दे दिया है अदालत ने माना है की यह ऍफ़ आई आर भी इस पूरे मामले से जुडी हुई है इस लिए इसे भी सीबीआई जांच का हिस्सा होना चाहिए

हमें लगता है की आगे भी कर्नल परिवार और मामले से डील कर रही अदालतों को हर समय विजिल रहना होगा, हम सीबीआई की निष्पक्ष्ता पर सवाल तो नहीं उठा रहे पर इस बात की गुंजाइश हमेशा रहती है की जब मामला पुलिस ऑफिसर्स क़े खिलाफ हो तो सीबीआई क़े लिए भी फ्री एंड फेयर इन्वेस्टीगेशन मुश्किल काम होती है, ऐसे में मीडिया, पीड़ित परिवार और अदालत को हर समय नजर बनाए रखनी होगी



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