bikram singh majithia news: बिक्रम सिंह मजीठिया की गिरफ्तारी के बाद कई सारे गंभीर सवाल खड़े हुए, क्या punjab and haryana high court, bikram singh majithia case में राहत देगा ?

जालंधर(03/07/2025): दोस्तों पंजाब की भगवंत मान  के नेतृत्व वाली सरकार ने  25/06/2025 को प्रमुख अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया को यह कहकर विजिलेंस से गिरफ्तार करवा लिया की पंजाब सरकार को पता चला है की बिक्रम सिंह मजीठिया ने अपनी कानूनी आय से 540 करोड़ रूपये ज्यादा कमाए हैं जो पंजाब सरकार में मंत्री रहते हुए पद का दुरूपयोग करके जोड़े गए है इसके बाद मोहाली की अदालत ने बिक्रम सिंह मजीठिया का पहले 7 दिन का पुलिस रिमांड दे दिया और 02/07/2025 को फिर से 4 दिन का रिमांड बढ़ा दिया, इतना तो सभी जानते होंगे तो चलिए हमारी स्टोरी का लीड पैराग्राफ भी इसे ही मान लीजिये

हम इस स्टोरी में आगे बिक्रम सिंह मजीठिया की गिरफ्तारी के बाद खड़े हुए कुछ सवालों पे बात करना चाहते है, पहला सवाल की पंजाब सरकार के कुछ चापलूस पत्रकारों और कुछ पुराने अफसरों को सुना जाये तो कहते है की बिक्रम सिंह मजीठिया बहुत ताकतवर आदमी है इस लिए आजतक उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी, ये बात  तब तक ही सही थी जब तक मजीठिया बादल सरकार में मंत्री थे उसके बाद  के दिनों के लिए यह बात सही नहीं लगती क्योकि कुछ समय पहले भगवंत मान सरकार ने बिक्रम सिंह मजीठिया को मिली सुरक्षा में एक दम कटौती कर दी थी अब मोहाली की अदालत के सामने मजीठिया का पक्ष रखने वाले वकीलों ने अदालत को बताया की मजीठिया की सुरक्षा तभी वापिस बहाल हुई थी जब पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में अर्जी डाली गई थी, अब जरा सोचिये अगर मजीठिया इतने ताकतवर इंसान हैं तो उनकी सुरक्षा तो एक बार कहने पे ही केंद्र सरकार बढ़ा देती या जरुरी दखल देती और भगवंत मान  सरकार से ही यह काम करवा देती, ऐसे में मजीठिया को हाई कोर्ट में अर्जी क्यों डालनी पड़ी, इससे ऐसा लगता है की मजीठिया को ताकतवर इंसान बता के कुछ लोग भगवंत मान सरकार के कदम को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं

इस केस में जब मोहाली की अदालत में सरकारी वकील और मजीठिया के वकील आमने सामने हुए तो सरकारी पक्ष ने यह बात मानी की मजीठिया के लिए खतरा बना रहता है इस लिए केस की सुनवाई कैमरों की निगरानी में करवाई जाये जिसका मजीठिया के वकीलों ने विरोध किया पर एक बात सोचने वाली है की अगर मजीठिया की जान को खतरा है तो कुछ समय पहले भगवंत मान सरकार ने मजीठिया की सुरक्षा क्यों कम कर दी थी और अगर उस समय खतरा नहीं था तो आज इसी सरकार के वकील अदालत के सामने खतरा होने की बात क्यों कह रहे हैं, अब सवाल उठता है की या तो भगवंत मान सरकार की नियत तब ठीक नहीं थी जब मजीठिया की सुरक्षा कम की गई थी या सरकार आज झूठ बोल रही है की मजीठिया के लिए अदालत परिसर में भी कोई खतरा हो सकता है

दूसरा सवाल की मजीठिया के वकीलों ने अदालत में अर्जी डाली की मजीठिया को गिरफ्तार करने के बाद ऍफ़ आई आर की कॉपी और कॉपी ऑफ़ रिमांड उन्हें दी जाये अगर मजीठिया के वकीलों की यह मांग सच्ची है तो सवाल खड़ा होता है की मजीठिया या उनके वकीलों को विजिलेंस ने ऍफ़ आई आर और रिमांड की कॉपी क्यों नहीं दी, देश की आम जनता को भी यह बात जान लेनी चाहिए की ऍफ़ आई आर एक पब्लिक डॉक्यूमेंट है और इस मामले में तो विजिलेंस ऍफ़ आई आर मुख्य आरोपी को ही नहीं दे रही यह बात भी विजिलेंस की नियत में खोंट होने की तरफ एक इशारा करती है 

जिस एस आई एल नामक कंपनी को लेकर सारा बवाल खड़ा हुआ है बतौर मजीठिया के वकीलों मजीठिया ने उससे साल 2007 में खुद को अलग कर लिया था आज मजीठिया के पास उक्त कंपनी का सिर्फ 11% के शेयर हैं कंपनी का मालिकाना हक़ मजीठिया के परिवार के लोगों के पास है लेकिन एहि बात विजिलेंस कैसे और किन सबूतों के आधार पे कह सकती है की मजीठिया ने मंत्री रहते हुए इस कंपनी को मदद पहुंचाने के लिए अपने पद का दुरूपयोग किया था मतलब जो पैसे कंपनी के खतों में आए गए वो मजीठिया के हैं या मजीठिया ने दिलवाये हैं ये पक्के तौर पे कैसे साबित होगा थोड़ा समझ आना मुश्किल है 

मजीठिया के वकीलों ने मोहाली की अदालत को बताया की जिन फैक्ट्स को आधार बना के यह मौजूदा ऍफ़ आई आर दर्ज की गई है वो सभी फैक्ट्स तब भी पुलिस के सामने थे जब मजीठिया के खिलाफ पहले दर्ज की गई ऍफ़ आई आर जो NDPS एक्ट के तहत दर्ज की गई थी की जांच चल रही थी ऐसे में यह नई ऍफ़ आई आर सिर्फ पुरानी ऍफ़ आई आर के मामले में मिली बेल को किनारे कर फिर से सिर्फ मजीठिया को जेल में डालने की मंशा से दर्ज की गई है, कानून अगर पुराने मामले से जुड़े कुछ नए फैक्ट्स सामने आए हैं तो उन्हें पुरानी ऍफ़ आई आर में जोड़ा जा सकता था, पुराने फैक्ट्स से जुड़े कुछ नए फैक्ट्स के आधार पे नई ऍफ़ आई आर दर्ज करना विजिलेंस की नियत में एक और खोंट होने की तरफ इशारा करता हैमजीठिया के वकीलों का कहना की ये नया मामला सिर्फ मजीठिया को जेल में रखने की नियत से ही दर्ज किया गया है ठीक बात ही लगती  है अगर पुरानी ऍफ़ आई आर और नई ऍफ़ आई आर के फैक्ट्स एक ही हैं या एक दुसरे से जुड़े हैं तो ही इन वकीलों की यह पूरी बात सही मानी जानी चाहिए

एक और बात सामने आई है की मजीठिया के वकीलों ने अदालत को बताया की पुराने मामले में हाई कोर्ट ने यह पाया था की इस बात के सबूत नहीं हैं की मजीठिया NDPS के मामले में शामिल हैं और इसके बाद पंजाब सरकार मजीठिया की बेल को ख़ारिज करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट गई तो सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया था, अगर यह दोनों बातें जो इन वकीलों ने कही हैं सही हैं तो मजीठिया के खिलाफ चल रहा पुराना मामला अब तक पंजाब सरकार ने वापिस क्यों नहीं लिया यह बात भी पंजाब सरकार पे गंभीर सवाल खड़े करती है

इसके बाद एक और चौकाने वाली बात सामने आई है की यह नई  ऍफ़ आई आर सुबह 4.40 am पे दर्ज की गई और तुरंत मजीठिया को अरेस्ट करने के लिए उनके घर पे धावा बोल दिया गया, यह भी शक पैदा होता है की यह ऍफ़ आई आर सुबह इतनी जल्दी के समय में क्यों दर्ज की गई, यह ऍफ़ आई आर वर्किंग हॉर्स में भी तो दर्ज की जा सकती थी लेकिन ऐसा क्यों नहीं किया गया, और अगर ऍफ़ आई आर दर्ज भी की गई तो ऐसा क्या डर था की एक दम से मजीठिया के घर पे रेड कर दी गई मजीठिया एक नेता हैं कोई आदतन अपराधी तो हैं नहीं की वो भाग जायेंगे , ऐसे में क्या विजिलेंस को डर था की मजीठिया को कही इस बात की खबर लग जाये की उनके खिलाफ कोई नया फर्जी मामला दर्ज किया गया है क्या विजिलेंस को इस बात का शक था की कोई उनके विभाग मेसे ही मजीठिया को खबर दे सकता है , ऐसे में विजिलेंस को किस अधिकारी के खबरी होने का शक था यह बात भी विजिलेंस को पंजाब की जनता को बतानी चाहिए

मजीठिया के वकीलों ने मोहाली की अदालत को बताया की अगर ये नए फैक्ट्स जो सरकार के मुताबिक नए है उन्हें कानून पुरानी ऍफ़ आई आर में जोड़ा जाना चाहिए ऐसे में अगर जोड़े गए फैक्ट्स के आधार पे मजीठिया को दुबारा गिरफ्तार करना होता तो पुराने मामले में बेल देने वाली अदालत से परमिशन लेनी पड़ती इस परमिशन से बचने के लिए और हर हाल में मजीठिया को दुबारा गिफ्तार करने  की नियत से ये ऍफ़ आई आर दर्ज की गई है, इन वकीलों ने कहा है की नई ऍफ़ आई आर में जो भी नए फैक्ट्स दिखाए गए है वो सब पुराने मामले के दौरान कई पंजाब सरकार के अफसरों के एफिडेविट में दर्ज है, इसके बाद भी पुराने मामले में सरकार मजीठिया को जेल में रखने में कामयाब नहीं हुई थी, इस नाकामी की वजह से ही यह नई ऍफ़ आई आर दर्ज की गई है, अगर मजीठिया के वकीलों की यह बातें सही है तो पंजाब सरकार ने मिसयूज ऑफ़ प्रोसेस ऑफ़ लॉ किया है

इस के बाद बहस करते हुए मजीठिया के वकीलों ने कहा है की सायप्रस और सिंगापोर की जिन कंपनियों पे दोष लगाए जा रहे है उन कंपनियों ने एस आई एल में पैसे लगाने से पहले FERA और FEMA की जरुरी मंजूरियां लेकर ही पैसे इन्वेस्ट किये थे ऐसे में यह बात सवाल खड़े करती है की उस समय FERA और FEMA के तहत अगर मजूरी मिली होगी तब भी सारी जांच पड़ताल तो हुई ही होगी ही अब  इन कंपनियों की इन्वेस्टमेंट पे उंगली उठाने के कौनसे सबूत पंजाब सरकार के पास है वो अदालत के सामने रखे जाएँ, अगर कोई सबूत नहीं है तो पंजाब सरकार की नियत पे यहां भी एक बड़ा गंभीर सवाल खड़ा होता है

आगे बहस की गई की जिन कंपनियों के बारे ऍफ़ आई आर और एप्लीकेशन में जिक्र किया गया है उनमे से किसी भी कम्पनीज का मजीठिया से कोई लेना देना ही नहीं है, अब अगर इन वकीलों की यह दलील सही है तो क्या विजिलेंस ने बिना किसी भी आधार के मजीठिया के खिलाफ यह नया मामला दर्ज कर दिया है अगर यह बात सही है तो विजिलेंस के काम करने की क़ाबलियत पे गंभीर सवाल खड़े होते हैं

आगे की बहस में इन वकीलों ने कहा की जिस फाइनेंसियल ट्रांसक्शन के आधार पे यह नई ऍफ़ आई आर दर्ज की गई है की सभी ट्रांसेक्शन्स  को पुराने NDPS  एक्ट वाले मामले की जांच के समय जांच लिया गया था, अब अगर इन वकीलों की यह बात सच मान ली जाये तो सवाल खड़ा होता है की अगर इन ट्रांसेक्शन्स को पहले ही जांच लिया गया था तो उसी समय कोई नई ऍफ़ आई आर क्यों दर्ज नहीं की गई थी जो आज दर्ज की गई है इतने सालों का गैप क्यों रहा, यहां भी पंजाब सरकार और विजिलेंस पे शक के सवाल खड़े होते हैं

आगे एक बात और सामने आई की मजीठिया के वकीलों ने अदालत से कहा की यह गिरफ्तारी गैरकानूनी है क्योकि गिरफ़्तारी के समय मजीठिया को कॉपी ऑफ़ ग्राउंड ऑफ़ अरेस्ट नहीं दी गई, अदालत का कहना है की पुलिस रिकॉर्ड को देखने से पता लगता है गिरफतारी के समय मजीठिया और उनकी पत्नी दोनों ने कॉपी ऑफ़ ग्राउंड ऑफ़ अरेस्ट पे सिग्नेचर किये है अब यह कहना की उन्हें कॉपी ऑफ़ ग्राउंड ऑफ़ अरेस्ट नहीं दिया गया सही नहीं है, इस बात पे कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा क्योकि हमे नहीं पता की अदालत ने किस डॉक्यूमेंट को देखने के बाद यह नहीं सोचा की हो सकता है की विजिलेंस वालों ने जबरदस्ती भी सिग्नेचर करवाए हो सकते है और अदालत को क्यों लगा की यहां कोई प्रेशर बनाये गए होने की संभावना नहीं है 

आखरी एक बात पे मजीठिया के वकील पूरी तरह से चूक गए और इन वकीलों ने कहा की इस नई ऍफ़ आई आर को दर्ज करने से पहले कोई इन्क्वाइरी नहीं की गई है ऐसे में अदालत ने कहा की लम्बे समय से सिट मामले की जांच कर रही है इस इन्क्वायरी को मजीठिया ने ज्वाइन भी किया था तो अब कैसे कहा जा सकता है की जांच नहीं की गई

आगे एक सवाल खड़ा होता है की सिट किस मामले की जांच कर रही थी NDPS  एक्ट के तहत आते पुराने मामले की या नए मामले की जो आमदन से ज्यादा प्रॉपर्टी बनाने का दर्ज किया गया हैअगर सिट पुराने मामले की जांच कर रही थी तो यह नए मामले की जाँच कैसे हुई जब की अदालत खुद ही मान रही है की दोनों मामलों के फैक्ट्स अलग अलग हैं और अगर सिट नए मामले की जाँच कर रही थी तो मजीठिया के वकीलों का कहना की इस नए मामले को दर्ज किये जाने से पहले कोई जांच नहीं की गई बिलकुल गलत स्टेटमेंट मानी जानी चाहिए, पर इस पूरी बात पे भी कौन सही और कौन गलत सोच रहा  है कहना ठीक नहीं होगा क्योकि इस्पे ठीक से तभी कुछ कहा जा सकता है जब मामले से जुड़े सारे डाक्यूमेंट्स हमारे पास हों

इस नए मामले में मामले में मजीठिया पक्ष पे लगभग कोई सवाल खड़ा होता दिखाई नहीं दे रहा पर पंजाब सरकार की कार गुजारी पे कई सारे गंभीर सवाल खड़े हो रहे है और तो और यह नई दर्ज की गई ऍफ़ आई आर खुद ही मेलाफाइड इंटेंशन की तरफ इशारा करती है ऐसा लगता है की कल सुबह मतलब 04/07/2025 को जब यह खबर आप लोग पढ़ रहे होंगे तब तक हाई कोर्ट से कुछ कुछ रिलीफ मजीठिया को मिल जाये अगर नहीं तो आने वाली अगली एक या दो तारीखों तक मजीठिया को कोई रिलीफ मिल जाये तो कोई चौकाने वाली बात नहीं होगी 



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