कैसे pakistan ने afghanistan की पीठ में छुरा घोंपा, china ने कैसे अपने हर पडोसी देश को इस्तेमाल किया, china-india-afghanistan-pakistan की GEO politics पर रौशनी डालती एक कहानी....

जालंधर(23/02/2023): Afghanistan की राजधानी काबुल में कम्युनिस्ट्स का सत्ता पर काबिज हुए अभी सिर्फ 11 दिन हुए थे, Pakistan के जनरल जिया उल हक़ ने अमेरिका के तब के राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर को एक खत लिख कर afghanistan में कम्युनिस्ट्स के द्वारा सत्ता हासिल करने के कदम को पूरे छेत्र के लिए एक बड़ा खतरा बताया, वो बात अलग है की जनरल जिया को पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज़ हुए अभी साल भर भी नहीं हुआ था, जनरल जिया खुद सेना के जरिये सत्ता में आए थे

जिम्मी कार्टर डेमोक्रेट्स थे और वियतनाम युद्ध में अमेरिकी सेना की हार की बाद सत्ता में आए थे ने जनरल जिया उल हक़ के अंदाज़े से सहमति दिखाई इसके तुरंत बाद जिम्मी कार्टर ने पल्ट कर जिया उल हक़ को 9 जून 1978 को जवाबी खत लिखा जिसमे कहा की afghanistan में सोवियत प्रभाव पूरे छेत्र और पूरी आज़ाद दुनिया के लिए एक बड़ा खतरा है, पर जिम्मी कार्टर अभी जिया उल हक़ के साथ मीटिंग करने के लिए तैयार नहीं थे इसकी 2 वजह थीं, पहली की अमेरिका अभी तक जनरल जिया उल हक़ को लेकर पूरी तरह से निश्चित नहीं था क्योकि जिया उल हक़ खुद भी कोई चुने हुए नेता नहीं थे और एक सैनिक तना शाह थे, दूसरी वजह थी की अभी तक afghanistan में सीआईए अमेरिका की आने वाले समय में किसी भी भूमिका को लेकर कोई अस्सेस्मेंट नहीं लगा सकी थी

साल था 1979 और क्रिसमस का दिन था सोवियत संघ ने afghanistan में PDPA की मदद के लिए रेड आर्मी भेज दी, अब ये भी बहुत जोखिम भरा काम था, अमेरिका के लिए अब एक अच्छी बात थी और एक बुरी बात, बुरी बात यह थी की अगर सोवियत संघ afghanistan को स्थिर करने में कामयाब हो जाता है तो पूरे दक्षिण एशिया और मिडिल ईस्ट में कम्युनिस्ट विचारधारा के पैर पसारने का बड़ा खतरा था पर अच्छी बात यह थी की afghanistan एक कट्टर धार्मिक लोगों का देश था और ऐसे देश में कम्युनिस्ट विचारधारा का टिक पाना मुश्किल था और ऐसा हो भी रहा था और जिहादी लोगो ने रेड आर्मी का विरोध करना शुरू कर दिया था, ऐसे में अमेरिका के लिए यह एक मौक़े से कम नहीं था की वो दखल देते हुए सोवियत संघ के लिए afghanistan को वियतनाम बना दे

उस समय अमेरिका के NSA थे ब्रजेजिंस्की जो चाहते थे की अमेरिका afghanistan के विद्रोहियों को हथियारों और पैसों की मदद बढ़ाये, ऐसा करने के लिए अमेरिका को किसी का कन्धा चाहिए था जो सिर्फ जिया उल हक़ ही दे सकते थे ऐसे में अमेरिका के NSA ने राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर से कहा की वो इस्लामिक दुनिया के देशो से afghanistan में सोवियत दखल के खिलाफ प्रोपोगंडा चलाने को कहें, कोवर्ट एक्शन की मदद करे और सोवियत के खिलाफ कैंपेन करने के लिए इन देशों को राज़ी करें, इसके लिए अमेरिका के राष्ट्रपति राज़ी भी हो गए उन्होंने afghanistan में सोवियत सेना से लड़ रहे लड़ाकों को खूब पैसा भेजना शुरू कर दिया, नए नए हथियारों का जखीरा भी afghanistan भेजना शुरू कर दिया, साथ ही china और pakistan से मदद मांगी की वो afghanistan में सोवियत सेना के खिलाफ लड़ रहे लड़ाकों को प्रशिक्षण दें, साथ ही दूसरी तरफ एक अन्य इस्लामिक देश सऊदी अरब भी afghanistan में सोवियत दखल से काफी चिंतित था

तभी जिम्मी कार्टर अमेरिका में सत्ता से बाहर निकल गए और उनकी जगह आए नए राष्ट्रपति रोनॉल्ड रीगन जिन्होंने आते ही afghanistan युद्ध के लड़ाकों को दी जाने वाली मदद काफी बढ़ा दी और इस ऑपरेशन को नाम दिया ऑपरेशन साइक्लोन इस ऑपरेशन के तहत साल 1980 में लड़ाकों को $30 मिलियन की मदद दी गई, साल 1985 में इस मदद को बढ़ा कर $250 मिलियन कर दिया गया, साल 1987 में इसका स्तर $650 मिलियन तक पहुंच गया, साल 1979 से 1992 के बीच अमेरिका ने afghanistan में एक्टिव मुजाहिदीन ग्रुप्स को $3 मिलियन की मदद भेजी थी

pakistan की खुफिया एजेंसी ISI की मदद से पूरी दुनिया से मुस्लिम युवाओं को इकठा किया गया उन्हें pakistan के कैम्प्स में प्रशिक्षण दिया गया और afghanistan में सोवियत सेना से लड़ने के लिए भेजा गया, मशहूर पत्रकार एहमद रशीद लिखते है की साल 1982 से 1992 के बीच दुनिया के लगभग 40 मुस्लिम देशों से लगभग 35000 मुस्लिम कटरपंथी afghanistan युद्ध में सोवियत सेना के खिलाफ लड़ने के लिए आगे आए, इसके इलावा लगभग 10 हजार से ज्यादा और युवा pakistan के मदरसों में पढ़ने लिए आए थे, इतना सब होने के बाद भी सीआईए को अभी भी भरोसा नहीं था की यह मुजाहिद्दीन सोवियत की रेड आर्मी से लड़ पाएंगे

रोनाल्ड रीगन के पास ये शक्ति थी की वो अफगान लड़ाकों को स्ट्रिंगर मिसाइल दें उन्हें ऐसे करने से तब तक कोई नहीं रोक सकता था जब तक वो अमेरिका में बने बड़े और घातक हथियारों की सप्लाई अफगान में न शुरू कर दें ऐसे इस लिए जरुरी था की जब कभी सोवियत अमेरिका पर अफगान लड़ाकों को हथियार देने का आरोप लगाएं तो अमेरिका इस बात से साफ़ मुकर जाए, इस पालिसी के तहत अमेरिका ने अफगान लड़ाकों को स्ट्रिंगर मिसाइल देने शुरू किये जिसकी मदद से अफगान लड़ाकों ने सोवियत लड़ाकू जहाजों को मारना शुरू किया इसके बाद सोवियत पर जिसके नए नेता मिखाइल गोर्बाचोव जो पहले ही afghanistan से निकलना चाहते थे पर सोवियत जनता का अफगान युद्ध खत्म करने का दबाव और बढ़ गया अमेरिका से मिली स्ट्रिंगर मिसाइल ने अफगान लड़ाकों का मनोबल काफी बढ़ा दिया, इसके बाद सीआईए ने सीधे तौर पर आई एस आई को मदद देनी शुरू कर दी ताकि दुनिया के अल्ग अल्ग देशों से लड़ाकों को भर्ती कर अफगान युद्ध में सोवियत के खिलाफ उतारा जा सके, इसके इलावा अमेरिका, pakistan और ब्रिटेन की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने सोवियत के सेंट्रल एशिया रिपब्लिक्स में हथियार भेजने शुरू किये जिनके afghanistan के साथ लम्बे बॉर्डर लगते थे

साल 1989 में मिखाइल गोर्बाचोव ने afghanistan से सेना वापिस बुला ली, एहि से afghanistan को दुश्मनो का कब्रिस्तान कहा जाने लगा, इसके तुरंत बाद ऐसे कयास लगाए जाने लगे की afghanistan की नजीबुल्लाह सरकार कभी भी सत्ता से बाहर हो सकती है, उधर अमेरिका के राष्ट्रपति रीगन ने afghanistan के लड़ाकों को घातक हथियारों की मदद बंद करदी और साथ ही दी जाने वाली आर्थिक मदद भी काफी कम करदी, इसके बाद आया साल 1991 जब सोवियत संघ का विघटन हो गया जिसके बाद नजीबुल्लाह सरकार को मास्को से आर्थिक और सैनिक मदद दोनों मिलनी बंद हो गई और साल 1992 में अफगान सरकार भी मुँह के भार गिर गई, इसके बाद afghanistan में कब कब क्या क्या हुआ यह बात आज की पूरी जनरेशन को पता है, इसलिए लादेन वाले चैप्टर पर फिर कभी बात की जाएगी

एक बार पकिस्तानी सेना के अफसरों को लगा की हामिद करज़ई भारत की तरफ झुक रहे हैं और अगर ऐसे में हामिद करज़ई की सरकार और taliban के बीच कोई समझौता सीधे तौर पर हो जाता हैं तो यह बात pakistan के हितों के लिए सीधा नुकसान देने वाली होगी

ऐसे ही साल 2010 के फरवरी माह में pakistan ने उस सेफ हाउस पर रेड करदी जहाँ mullah baradar ठहरे हुए थे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था इस मामले पर सफाई देते हुए pakistan ने न्यू यॉर्क टाइम्स से बात करते हुए कहा था की ऐसा इस लिए किया गया है क्योकि mullah baradar pakistan को बिना विश्वास में लिए ही समझौता करने जा रहे थे, pakistan ने साफ़ कहा की वो taliban को बचा रहा है क्योकि taliban pakistan पर निर्भर है, आगे बढ़ते हुए pakistan ने कहा की वो कभी भी mullah baradar को हामिद करज़ई और भारत से डील नहीं करने दे सकता

कहा जाता था की अगर अमेरिका को taliban के साथ कोई शांति समझौता करना है तो उसे taliban की असली लीडरशिप को pakistan में खोजना होगा जो की pakistan की गहराईयों में है, pakistan का असली चेहरा बस एहि नहीं है आगे भी पढ़ते रहिए
आप सबको याद होगा की 90 के दशक में एक बार कुछ आतंकियों ने भारत का एक यात्री विमान अपहरण कर afghanistan के कंधार में लैंड करवाया था तब विमान के आस पास taliban के लड़ाके बन्दूक लिए हवाई अड्डे को गार्ड कर रहे थे, अजीत डोवाल के मुताबिक वहाँ pakistan सेना के 2 बड़े अधिकारी मौजूद थे जिनमेंसे 1 लियूटेनैंट कर्नल और 1 मेजर रैंक के अधिकारी थे दोनों वहाँ भारत के लिए हालात और बिगाड़ने की नियत से आए थे, इसके इलावा अपहरणकर्ता सीधे ISI अधिकारीयों जो कंधार में मौजूद थे से सम्पर्क साधे हुए थे

उज़्बेकिस्तान के ताशकंत में सेंट्रल एंड साउथ एशियन कांफ्रेंस में बोलते हुए afghanistan के तब के राष्ट्रपति घनी ने कहा की pakistan taliban को शांति बनाये रखने के लिए मनाने में पूरी तरह से विफल है, श्री घनी ने कहा की pakistan afghanistan में आतंकवाद फ़ैलाने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है और pakistan की मदद से लगभग 10000 आतंकवादी पिछले 1 महीने में afghanistan में दाखिल हुए है, घनी जब यह भाषण दे रहे थे तब pakistan के तब के प्रधानमंत्री इमरान खान कुछ फ़ीट की दूरी पर बैठे हुए थे और जब घनी यह भाषण दे रहे थे तब afghanistan के 34 मेसे 18 प्रांत taliban के कब्ज़े में जा चुके थे

जब taliban का पूरा कब्ज़ा हुआ तो taliban ने अफगान सैनिकों को चले जाने की अनुमति दे दी पर शर्त ये थी की यह सैनिक taliban के सामने अपने हथियारों के साथ समर्पण कर दे, जब अफगान सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया तब ऐसे बहुत से सैनिक थे जिनको महीनों से तनख्वा तक नहीं मिली थी इन सैनिकों को जेब खर्च तक तालिबान ने दिया, इन सब बातों के बाद जब तालिबान ने अपनी कैबिनेट बनाई तो ज्यादातर मेंबर्स तालिबान की लीडरशिप से ही आए, 33 मेंबर्स मेसे 17 ऐसे थे जिन्हे संयुक्त राष्ट्र संघ ने पहले ही आतंकी घोषित कर रखा था

Amrullah saleh जो कि अफगानिस्तान के प्रमुख नेताओं मेसे एक हैं, saleh सीआईए, रॉ और रूसी ख़ुफ़िया एजेंसीज के साथ काफी नजदीक से काम कर चुके हैं saleh ने अमेरिका की सीआईए के ट्रेनिंग प्रोग्राम से प्रशिक्षण लिया हुआ है, वो बात अलग है की saleh उम्र में कई सारे बड़े नेताओं से बहुत छोटे है, ऐसा इस लिए है क्योकि saleh को बहुत कम उम्र में ही afghanistan की सुरक्षा के लिए कई बार मैदान में उतरना पड़ा है, पर उनकी क़ाबलियत बहुत जानी मानी है, साल 2006 में तब के पाकिस्तानी आई एस आई प्रमुख कयानी से saleh को मिलवाया गया तो कयानी ने घमंड में कहा की वो अपने बेटे के उम्र के किसी इंसान से इंटेलिजेंस सीखने की जरुरत नहीं समझते, ऐसे ही तब के pakistan सेना के प्रमुख और तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ और तब के अफगान राष्ट्रपति करज़ई के बीच एक मुलाकात हुई इस मुलाकात में saleh भी थे जिन्होंने pakistan के सामने एक बार फिर से लादेन का मुद्दा उठा दिया, इस बात से मुशर्रफ भड़क गए और घमंड में saleh को नीचे दिखाने की मंशा से करज़ई से कहा की आप इस पंजशिरी को क्यों साथ लाए हैं

अब आगे पूरे आर्टिकल में china कि चालबाज़ी और धोखेबाज़ी का विश्लेषण होने वाला है, आपको पता लगेगा कि कैसे china ने कब कब किस देश को धोखा दिया और अपने हितों के लिए इस्तेमाल किया, जब सोवियत सेना afghanistan में लड़ रही थी तब china कि राजधानी बीजिंग में चिंता का माहौल था china को अपने वेस्ट्रन बॉर्डर्स कि चिंता सता रही थी, china के तब के वाईस प्रेमियर गेंग बीएओ ने कहा था कि अगर समय रहते सोवियत संघ को नहीं रोका गया तो उसका अगला टारगेट pakistan होगा

china ही afghanistan में लड़ रहे लड़ाकों को AK-47 और RPG देने वाला प्रमुख देश था ऐसा करने में pakistan china का सबसे बड़ा साझेदार था इन हथियारों कि सप्लाई pakistan के रास्ते हुआ करती थी इन ही हथियारों से सोवियत सैनिकों कि जान ली जाती थी, अफगान लड़ाकों के एक ग्रुप के प्रमुख रहे एहमद शाह मसूद china से सैनिक मदद पाने वालों मेसे सबसे प्रमुख थे

जैसे कभी मुल्ला उमर ने कहा था वैसे लगभग 2 दशक बाद सत्ता हाथ में आने पर mullah baradar ने भी कहा कि किसी भी हाल में afghanistan कि जमीन का इस्तेमाल china के खिलाफ नहीं होने देंगे, इसके साथ ही चीनी कंपनियों के लिए afghanistan के दरवाजे भी खुलने लगे, 2 चीनी टेलीकॉम कम्पनीज huawei और ZTE जो afghanistan के पडोसी देश pakistan में पहले से मौजूद थीं अब Afghanistan में अपनी सेवा देने के लिए तैयार बैठी थी, इनके इलावा अब china कि इंफ्रास्ट्रक्चर और माइनिंग कंपनियों कि नजर भी afghanistan के मिनरल भंडार पर गड़ने लगी थी

साल 2016 में चीन और afghanistan में एक समझौते पर दस्तख़त हुए जिसके मुताबिक afghanistan को china कि रोड एंड बेल्ट परियोजना में शामिल कर लिया गया, china ही वो देश है जिसको taliban में afghanistan का सबसे पहले भविष्य दिखाई दिया और china ने afghanistan में taliban को सत्ता हासिल करने में सबसे ज्यादा मदद कि थी , जब taliban सत्ता में आए तो कुछ चीनी राष्ट्रवादियों ने taliban कि तुलना माओ से करनी शुरू करदी, ऐसे ही चीनी राष्ट्रवादी लेखक है वांग जिन्होंने china के ट्विटर के सामान प्लेटफार्म साइना वेइबो पर लिखा कि taliban afghanistan कि पीएलए है और आगे लिखा कि afghanistan में taliban ही china के सच्चे दोस्त हैं, पर बाद में ये पोस्ट डिलीट कर दिया गया ऐसा या तो वांग ने खुद किया होगा या फिर प्लेटफार्म साइना वेइबो ने china में सख्त सेंसरशिप कि वजह से किया हो सकता है

दूसरी तरफ चालबाज़ china के राष्ट्रपति जिनपिंग ने आखरी दिन तक afghanistan के पूर्व राष्ट्रपति घनी से संपर्क बनाए रखा, जिनपिंग ने फ़ोन करके घनी से कहा कि china शांति में विश्वास रखता है और china हमेशा afghanistan द्वारा और afghanistan कि अपनी सरकार का समर्थन करता रहेगा और कहा किसी भी समस्या का समाधान बात चीत से हल करने का china पक्षधर है, इसके इलावा कहा china afghanistan में शांति लाने के लिए जो भी मदद कर सकेगा जरूर करेगा

वैसे तो इस सबके बाद से china की कई सारी कम्पनीज ने कई सारे प्रोजेक्ट्स afghanistan में करने शुरू किये है पर इन सबमे सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है china मेटलर्जिकल ग्रुप कारपोरेशन द्वारा अयनक कॉपर माइनिंग प्रोजेक्ट, ये प्रोजेक्ट साल 2008 में चीनी कंपनी ने 30 सालों के लिए हासिल किया था, यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कॉपर माइनिंग प्रोजेक्ट है

इससे आगे बढ़ा जाये तो दिखेगा की china का साल 2020 में afghanistan में डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट है $4.4 मिलियन का, यह आंकड़ा china द्वारा pakistan में किये जा रहे ऐसे इंवेस्टमेंट्स का 3% से कम बैठता है, china का pakistan में ऐसा इन्वेस्टमेंट है $110 मिलियन का है

अब afghanistan ने 3 बातें साफ़ तौर पर कह दी है, पहली की अब afghanistan की जमीन पर कोई ट्रेनिंग कैंप नहीं चल सकेगा, दूसरी की अब afghanistan में कोई फण्ड इकठा करने का कैंपेन नहीं चल सकेगा खास कर जिसका इस्तेमाल किसी अन्य देश में कोई प्रोपोगंडा चलाने के लिए किया जाना हो, तीसरा की अब afghanistan में कोई भर्ती शिविर भी नहीं चलाये जा सकेंगे

याद रखिये की जब taliban ने अमेरिका के जाने के बाद काबुल पर कब्ज़ा किया उस समय 4 ऐसे देश थे जिन्होंने कभी अपना दूतावास बंद नहीं किया था, यह देश है रूस, china, pakistan और ईरान, taliban के प्रवक्ता शाहीन ने ग्लोबल टाइम्स से बात करते हुए कहा की taliban के लड़ाके हर समय china के दूतावास की सुरक्षा के लिए तैनात रहेंगे, उन्होंने कहा की आपकी दूतावास के लोग शुरू से हमारे संपर्क में थे, और सबको चौंकाते हुए बताया की जब taliban काबुल में दाखिल हुआ तो उन्होंने इस बात की सूचना china के दूतावास को पहले ही दे रखी थी

वो बात अल्ग है की शायद china को आज भी इस बात कर डर है की तालिबान के आने से यह पूरा इलाका कही आतंकवाद की चपेट में न आ जाये इसी लिए china ने वखान कॉरिडोर में कोई बड़ा डायरेक्ट इंफ्रास्ट्रक्चर लिंक नहीं बनाया है,china चाहता है इस बार taliban का शाशन taliban के पिछली बार के शाशन से अलग और ठीक हो, taliban ने अपने पिछले शाशन काल में बामियान में भगवान बुद्ध की मूर्तियों को तोडा था जिसके बाद china और taliban के रिश्तों पर बुरा असर पड़ा था जिसके निशान आज भी दिखते हैं

china में 3 सबसे बड़े समुदाय हैं, सबसे बड़ा बुद्धिस्ट का समुदाय है उसके बाद दुसरे नंबर पर आता है ईसाई समुदाय और तीसरे नंबर पर आता है इस्लाम, वैसे china में कम्युनिस्ट पार्टी का शाशन है जिसमे कोई सरकारी आंकड़ा सामने नहीं आएगा क्योकि वहाँ समुदाय के आधार पर गिनती नहीं होती, वैसे सरकार की जानकारी के तहत china में 15 मिलियन ऐसे लोग है जो चर्च में प्रार्थना करते है पर इसके इलावा ऐसे कई लाख लोग है जो हाउस चर्च में ही प्रार्थना करते है, इन के बाद सबसे बड़ी गिनती इस्लाम को मानने वाले लोगों की है इस्लाम को मानने वालों की गिनती ईसाई धर्म को मानने वालों से बस थोड़ी ही कम है।

अब थोड़ा चलते है china में हुए दंगो की तरफ, china में पहला सबसे बड़ा दंगा साल 2009 में उरुमकी में जो xinjiang का हिंसा है uighur और हान समुदायों के बीच हुआ था इस दंगे में 200 लोगों की मौत हुई थी, इसके बाद पांच सालों बाद फिर दंगे हुए जब यह आरोप लगा की uighur लोगों मेसे कुछ लोगों ने कुन्मिंग में एक रेलवे स्टेशन पर आतंकी हमला किया इसमें 29 लोगों की जान गई थी, इसके बाद साल 2013 में रिपोर्ट आई की हजारों uighur लोगों ने xinjiang को छोड़ कर सीरिया चले गए हैं वहाँ यह लोग ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के साथ जुड़ गए है और अल क़ाएदा से लड़ रहे हैं

इसके इलावा china ने अरब देशों को लुभाने के लिए साल 2013 में china अरब स्टेट ट्रेड एक्सपो का आयोजन china के प्रान्त यिंचुआन में किया इसके बाद यह ट्रेड एक्सपो हर 2 साल पर किया जाने लगा अब यिंचुआन china में मीट फ़ूड एक्सपोर्ट हब बन चूका है यह सब करने के पीछे china की मनसा है की अरब देशों की फ़ूड मार्किट पर कब्ज़ा कर लिया जाए

China के निंगसिआ छेत्र में लगभग 3760 मस्जिद हैं जो सभी सरकार की मदद से ही चलती है, ऐसे ही china में निंगसिआ इस्लामिक कॉलेज है इस कॉलेज के डीन मा मिंग सीअन कहते है की पहले देश से प्यार करो फिर अपने धर्म से, मतलब china में देश को धर्म से पहले स्थान दिया जाता है

देखिये जहाँ pakistan भारत पर आए दिन कश्मीर में मनवा अधिकारों के उलंघन का आरोप लगाता रहता है वहीँ china द्वारा किये जारहे xinjiang में उलंघन की कभी बात तक नहीं करता, हाल के दिनों में पाकिस्तानी और इंटरनेशनल मीडिया के बार बार पूछने पर pakistan के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा की हमारा china के साथ बहुत मजबूत रिश्ता है इसलिए china xinjiang पर जो भी वर्शन देता है उसे ही हम सही मानते है, pakistan की इस मदद के बदले china pakistan द्वारा आतंकवाद की मदद को दुनिया के सामने डिफेंड करता है, इसी के तहत china ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी नियमों का उलंघन कर साल 2016 में जैशे मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को अंतरास्ट्रीय आतंकी घोषित किये जाने से रोक दिया था

china के इसी कदम की वजह से भारत ने साल 2016 में ही धर्मशाल में होने वाली एक मीटिंग के लिए china से निर्वासित uighur नेता डोल्कुन इसा को इलेक्ट्रॉनिक वीसा दिया, डोल्कुल इसा को china एक आतंकवादी मानता है china का आरोप है की साल 1990 में हुए बम ब्लास्ट के डोल्कुन इसा ही मास्टरमाइंड है, वैसे डोल्कुन इसा इस आरोप को ख़ारिज करते हैं, डोल्कुल इसा साल 2006 में चीन के xinjiang से भाग कर जर्मनी चले गए थे, वर्तमान समय में उन्हें जर्मन नागरिकता मिली हुई है

वहीँ अफगान taliban को लेकर शायद china एक बात भूल गया है की taliban के पिछले काल में साल 2001 से पहले afghanistan में ETIM मौजूद था जो afghanistan से अल क़ायदा की सरपरस्ती में china के खिलाफ साजिश रचता रहता था, आज का taliban वैसे तो कहता है की उसकी पालिसी के मुताबिक वो किसी भी हाल में china के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाएगा पर ETIM के प्रति आज के taliban में भी सहानुभूति मौजूद है जिसकी वजह xinjiang में आज के हालात हैं

साल 2014 में दिए अपने एक भाषण में china के राष्ट्रपति सी जिनपिंग ने कहा था की वो आतंकी संगठन जो pakistan और afghanistan के जमीन पर मौजूद है कभी भी सेंट्रल एशिया में दाखिल हो सकते हैं, इसके इलावा उन्होंने कहा था की ईस्ट तुर्केस्तान के आतंकी जो सीरिया और afghanistan में ट्रेनिंग ले चुके है कभी भी xinjiang में हमले को अंजाम दे सकते हैं

साल 2021 में china और ताजीकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ जिसके मुताबिक china की पब्लिक सिक्योरिटी बिउरो और पुलिस ने ताजीकिस्तान स्पेशल फोर्सेज के लिए बेस बनाने में सहमति दिखाई जिसके जरिए afghanistan पर नजर रखी जा सके और आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन्स चलाए जा सकें, जिसके लिए china ने $10 मिलियन का निवेश करने की बात कही और यह china द्वारा बनाया गया बेस ताजीकिस्तान की स्पेशल फोर्सेज को इस्तेमाल के लिए दिया जाने की बात हुई

ऐसा ही एक अरेंजमेंट china ने xinjiang और pakistan अधिकृत कश्मीर के बॉर्डर पर भी किया, इसके तहत pakistan और china की सेना मिलकर गस्त लगाएगी, इन दोनों मामलों से china की xinjiang के हालात को लेकर चिंता का प्रदर्शन होता है

साल 1949 में हान जाती का china की जनसख्या में सिर्फ 6% का योगदान था, 2010 के सेन्सस रिपोर्ट के मुताबिक हान जाती xinjiang की कुल जनसँख्या की 40% से कुछ ही कम थी, साल 1990 से 2000 के बीच हान जाती की जनसँख्या Uighur जाती से दुगनी औसत से बढ़ी थी, साल 2000 के अंत तक uighur और हान जाती की जनसँख्या xinjiang में लगभग बराबर हो गई, एहि सबसे बड़ी वजह है xinjiang में uighur और हान जाती के बीच चल रही टेंशन की

xinjiang में जब कोई uighur जाती का छात्र या छात्रा किसी सरकारी नौकरी या किसी यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए अप्लाई करते है तो उनसे हान जाती जितनी ही china भाषा का ज्ञान होने की उम्मीद की जाती है, uighur लोगो को उनके धार्मिक प्रेयर करने से रोका जाता है, uighur छात्रों को पढाई पूरी करने के बाद 2 साल का अल्ग कोर्स करना पड़ता है जिसमे उन्हें चीनी भाषा की पढाई करवाई जाती है जिसके लिए उन्हें बीजिंग या शंघाई जैसे शहरों में भेजा जाता है साथ ही इन छात्रों को साफ़ कह दिया जाता है की क्लासेज के दौरान किसी भी धार्मिक प्रेयर के लिए क्लासेज नहीं रोकी जाएँगी, इसके इलावा xinjiang में पार्टी बॉस हमेशा हान जाती से ही आता है वही uighur कैंडिडेट को गवर्नर पद से ऊपर नहीं जाने दिया जाता

फिर थोड़ा इस बात पर चर्चा करलें की कैसे china अंदर ही अंदर pakistan को निगलता जा रहा है, एक CPEC ड्राफ्ट प्लान लीक हुआ जिसमे पता चला की china pakistan की इकॉनमी के हर एक्सपेक्ट को अपने कब्ज़े में लेने में लगा हुआ है जहाँ pakistan के लगभर हर रोड प्रोजेक्ट, पावर प्रोजेक्ट, डैम प्रोजेक्ट्स को चीनी कंपनियों ने ही बनाया है वहीँ अब चीनी कंपनियों ने pakistan में लैंड प्रोजेक्ट पकड़ने के बाद pakistan में टूरिज्म और कल्चरल प्रोजेक्ट भी अपने हाथ में ले लिए हैं

आज pakistan में सबसे जरुरी ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट्स जैसे नेशनल हाइवे और लाहौर मेट्रो रेल प्रोजेक्ट भी चीनी कंपनियों ने किये है, pakistan के स्टॉक एक्सचेंज तक में china ने हिस्सा खरीद रखा है, china की कंपनियों ने pakistan में कोल् प्लांट्स के निर्माण से लेकर इलेक्ट्रिसिटी प्रोजेक्ट किये है, कुछ जानकार तो यहाँ तक कहते है की pakistan के नागरिक pakistan की सरकार को कितना बिजली का बिल देंगे यह बात भी चीनी कंपनियां ही तय करती हैं, अगर बात की जाए BRI युग की तो इस दौर में china ने pakistan को मदद देने के मामले में अमेरिका को पिछाड़ दिया है, china और pakistan के बीच व्यापर साल 2007 में सिर्फ $4 बिलियन था जो साल 2016 में बढ़ कर $13.7 बिलियन हो गया, साल 2020 में pakistan में जो भी डायरेक्ट फॉरेन इन्वेस्टमेंट हुआ उसमे 40% हिस्सा अकेले china का था यह रकम $2 बिलियन बनती है, यह बात भारत और अमेरिका दोनों के लिए बहुत बड़ी चिंता का विषय है और इससे भी बड़ी चिंता की वजह होनी चाहिए pakistan की जनता के लिए जो अनजाने में ही सही china की गुलाम बन चुकी है

इंडियन ओशियन में china की पहुंच ने इसे china और pakistan की कंपनियों के लिए व्यापारिक लॉन्चपैड बना दिया है जिसके जरिए china और pakistan की कंपनियों को अफ्रीका और मिडल ईस्ट तक एक्सपोर्ट करना बहुत आसान बना दिया है, ग्वादर से ऑपरेट करने के लिए china ने अगले 23 सालों के लिए टैक्स फ्री एग्रीमेंट कर लिया जो चीनी कंपनियों के लिए बहुत बड़ा फायदे का सौदा साबित हो रहा है

पेकिंग यूनिवर्सिटी के साउथ एशियन स्कॉलर हान हुआ कहते है की china के 2 बहुत ही जरुरी प्लानिंग की तरफ ध्यान देना चाहिए china शार्ट टर्म में चाहता है की वो pakistan सेना और ISI पर नर्म रुख रखे जिसके बदले वो pakistan की सेना और ISI की मदद से pakistan afghanistan बॉर्डर पर चल रहे uighur कैंपस को नष्ट कर सके, दूसरा और लॉन्ग टर्म प्लान में china CPEC प्रोजेक्ट में अपनी इन्वेस्टमेंट को सिक्योर रखना चाहता है

जहाँ एक तरफ china की पीएलए का भारत के साथ ख़राब रिश्ता बना है दूसरी तरफ यह बात pakistan और china के नजदीक आने की सबसे बड़ी वजह भी बनी है, china institute of contemporary international relation के एक एक्सपर्ट हु शीशेंग जिन्हे भारत pakistan मामलों का एक्सपर्ट माना जाता है कहते हैं की CPEC ने china और pakistan के रिश्तों पर गहरा असर डाला है, इस प्रोजेक्ट ने दोनों देशों को इस दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित किया है जहाँ दोनों देश लम्बे समय के लिए एक दुसरे के पार्टनर बन सकते हैं, हु आगे बढ़ते हुए कहते है की pakistan में होने वाली कोई भी परेशानी china को अपने आप परेशान कर देगी, pakistan अब china भारत रिश्तों के लिए एक बड़ा फैक्टर बन गया है

अब कुछ देर के लिए चलते है भारत afghanistan के रिश्तों की तरफ, भारत और afghanistan में दोस्ती साल 1950 में तब शुरू हुई जब दोनों देशों ने फ्रेंडशिप ट्रीटी पर हस्ताक्षर किये थे, दोनों देशों ने मिलकर कोलोनिअलिस्म के खिलाफ आवाज़ उठाई थी, गुट निरपेक्ष मूवमेंट में भी दोनों देश साथ सद्स्य थे

वहीँ दूसरी तरफ afghanistan के किसी भी ग्रुप चाहे वो taliban ही क्यों न हो ने pakistan और afghanistan के बीच दूरंद लाइन को कभी पक्की सीमा नहीं माना, ज़ाहिर शाह के मुताबिक तो pakistan की लम्बी पश्तून बेल्ट, और यहाँ तक की खैबर पख्तूनख्वा और बलोचिस्तान भी afghanistan का हिस्सा हैं, यह सरहद दोनों देशों के बीच लम्बे समय से झगडे का कारण बनती रही है
एक बार जब अफगान नेता दाऊद ने बलोचिस्तान के लड़ाकों की मदद करनी चाही तो pakistan के उस समय के शाशक ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने तुरंत pakistan अफगान बॉर्डर पर सेना लगा दी ताकि दाऊद के मंसूबों पर पानी फेरा जा सके, उस समय दाऊद ने खुले तौर पर कहा था की अगर जरुरत पड़ी तो भारत और सोवियत संघ दोनों afghanistan की मदद के लिए आगे आएंगे

जब सोवियत संघ ने afghanistan में सेना उतारी तो भारत ने इसका विरोध किया क्योकि भारत को ऐसा लगता था की ऐसे में सोवियत को रोकने के लिए अमेरिका भी दखल देगा जिससे उस समय चल रहा शीत युद्ध भारत के बॉर्डर तक आजाएगा, इस मामले में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में भी सोवियत का विरोध किया था

पर साल 1997 में एक इंटरव्यू में तब के taliban सरकार में डिप्टी फॉरेन मिनिस्टर रहे मुल्ला अब्दुल जजिल ने कहा की “जब सोवित सेना afghanistan में थी तब भारत ने कभी इसके खिलाफ नहीं बोला, भारत नजीबुल्लाह के गद्दी से हटने तक नजीबुल्लाह और सोवियत के कदम के साथ था, आज भी भारत हमारे खिलाफ खड़े ग्रुप्स की मदद कर रहा है ऐसे में बताइए भारत के साथ कैसे नार्मल रिश्ते रखे जा सकते हैं”

कश्मीरी आतंकी taliban राज में afghanistan को अपने लिए स्वर्ग मानते थे और कश्मीर में हमले करने के लिए afghanistan से ही प्लान्स बनाते थे यह बात भारत के लिए एक बड़ी समस्या थी वहीँ taliban का पूरी तरह से pakistan पर निर्भर होना दूसरी बड़ी समस्या थी जो भारत को परेशान करती थी ऐसे में भारत नॉर्थेर्न अलायन्स को सपोर्ट करता था जिसे मसूद लीड कर रहे थे, ऐसे हाल में भारत ने मसूद को रूस और ईरान के साथ सैनिक और आर्थिक मदद देने की ऑफर भी दी थी जो ताजीकिस्तान और ईरान के रस्ते दी जानी थी

taliban के जाने के बाद भारत afghanistan में एक बड़ा निवेशक बना, afghanistan में भारत की निवेश करने की कमिटमेंट $3 बिलियन थी, भारत ने afghanistan में अफगान इंडिया फ्रेंडशिप डैम भी बनाया था जिसे पहले सलमा डैम कहा जाता था, इसके इलावा भारत ने काबुल नेशनल पार्लियामेंट बिल्डिंग का भी निर्माण किया था, इस पर साल 2015 में taliban ने हमला किया था, जहाँ taliban के शाशन में भारत afghanistan व्यापार न के बराबर था वहीँ अमेरिकी सेना के आने के बाद इसे जैसे पंख ही लग गए हो अब यह व्यापार साल 2011 में $1.5 बिलियन तक पहुंच गया था इन सब बातों के इलावा दोनों देशों ने strategic partnership agreement पर हस्ताक्षर किए जिसके तहत भारत ने लम्बे समय तक अफगान नेशनल सिक्योरिटी फोर्सेज को प्रशिक्षण और हथियार मुहैया करवाया, पर भारत का हर कदम अमेरिकी सेना द्वारा मुहैया करवाई जा रही सुरक्षा पर ही निर्भर था ऐसे ही भारत साल 1980 में सोवियत सेना द्वारा मुहैया करवाई जा रही सुरक्षा की मदद से ही afghanistan में विकास कार्यो को अंजाम देता था

वहीँ दूसरी तरफ pakistan यह कहता था की भारत की afghanistan में मौजूदगी सिर्फ pakistan की जासूसी करने के लिए है और कहा करता था की pakistan में जो भी समस्या खड़ी होती है उसे भारत की इंटेलिजेंस करवाती है, असल में pakistan चाहता था की afghanistan में pakistan की कटपुतली सरकार रहे और भारत का afghanistan में कोई दखल न रहे

काबुल पर taliban के कब्ज़े के 2 हफ़्तों के बाद एक टॉप तालिबानी लीडर अब्बास स्तानिकजई ने कहा की taliban इस बार भारत के साथ मजबूत आर्थिक और कल्चरल गठजोड़ चाहता है, 1 सितम्बर 2021 को तालिबानी नेता हक़्क़ानी नेटवर्क के अनस हक़्क़ानी ने कहा की कश्मीर हमारे अधिकार छेत्र में नहीं आता इस लिए इसमें दखल देना taliban की पालिसी के खिलाफ है, 2 दिनों बाद ही एक अन्य तालिबानी नेता सुहैल शाहीन का ब्यान आया की मुस्लिम होने के नाते हमारा अधिकार है की हम अपने मुस्लिम भाइयों के पक्ष में आवाज़ उठाएं चाहे मामला कश्मीर का हो या दुनिया के किसी अन्य देश का

taliban साल 1990 में जैसे pakistan पर निर्भर था इस बार भी कुछ ऐसा ही दिखने लगा है taliban को ध्यान रखना होगा की pakistan अपने खुदके घरेलु मसलों को सुलझाने में समर्थ नहीं है लिहाजा ऐसा देश किसी अन्य देश को अपने पैरों पर खड़े होने में कैसे मदद कर सकता है, taliban ने अगर इस बार भी afghanistan के अंदरूनी मसलों को समय रहते सही ढंग से नहीं सुलझाया तो जल्द ही एक बार फिर afghanistan अंदरूनी जंग की तरफ बढ़ जाएगा

sources: foreignpolicy.com, www.researchgate.net, southasianvoices.org, www.insightsonindia.com, www.jstor.org, http://www.indiandefencereview.com, tribune.com, www.thestatesman.com, thediplomat.com, indiafoundation.in

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